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हड़ताल और द्वारावरोध।

गाड़ी जारही हो तो भी वे वहाँ पर उसे ख़ड़ी करके काम छोड़ देते हैं । ऐसी दशा में मुसाफ़िरों के बेहद तकलीफ़ होती है। इस तरह के हड़ताल कभी न्याय नहीं माने जा सकते । अपने फायदे के लिए दूसरों के हानि पहुँचाना बहुत बड़ा अपराध है। बड़े बड़े शहरों में जो पानी के नल लगे होते हैं, और गैस या बिजली की रोशनी होती हैं, उनके कारखानों में काम करनेवाले मज़दूर या कारीगर, यदि विना काफ़ी नोटिस दिये अचानक हड़ताल करदें, ता सारे शहर के अंधेरे में पड़ा रहना और विना पानी के तड़पना पड़े। इस तरह के हड़ताल न्याय्य नहीं। जो लोग इस तरह हुड्चाल करके सर्वसाधारण का कष्ट पहुँचाधे उन्हें सख्त सज़ा मिलनी चाहिए । हां यदि मुनासिव तौर पर हड़ताल किये जायें और उनसे न किसी की स्वाधीनताही भंग हो, न किलो के जान मालद्दी के जाने का अतरा हो, और न किसी की अचानक अहुत बड़ी तकलीफ़द्दी पहुँचने का डर हो, तो चे न्यायविरुद्ध कामों और अपराधों को गिनती में नहीं आ सकते । संसार में बलवान् हमेशाही निर्बल का पोड़न करता है। मजदूरों की अपेक्षा कारखानेदार अवश्यही अधिक शक्तिमान् और सम्पत्तिशाली होते हैं। उनके हाथ से निर्बल और दरिद्र मजदूरों का पीड़न होना सम्भव है। कारखानों के मालिक हमेशा यही चाहते हैं कि काम बहुत लें, पर मज़दूरी कम हैं। ऐसी अवस्था में मज़दूरों अथवा अन्यान्य श्रमजीवियों के बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं। उन्हें प्रतिदिन अधिक समय तक काम करना पड़ता है और उजरत कम मिलने के कारण उन्हें खाने पीने और पहनने की भी काफी नहीं मिलता। इससे लाचार होकर उन्हें अपने दुःख मालिक की सुनाने पड़ते हैं, शिकायतें करना पड़ती है, अर्जियां देनी पड़ती है। अपनी तकलीफें दूर करने को वेभर सक सच तरह कोशिश करते हैं। इस पर भी यदि उनकी दाद फ़रियाद काम न करे तो वे हड़ताल न करें तो करें क्या ? ऐसे मौक़ पर हुताल करना अनुचित नहीं । वह एक प्रकार का अस्त्र है। यदि वह उचित ति पर, योग्य समय में, दृढतापूर्वक चलाया जाय तो चलानेवालों की सफलता हैाती है । यारप और अमेरिका में इसके बहुत उदाहरण मिलते हैं । इस देश में भी, कई घर्ष हुए, ई० अई रेलवे के ड्राइवरों ने जो हड़ताल किया था उससे उनकी शिकायतें दूर होगई थीं। नवम्बर ०७ के हड़ताल का भी उनके लिए अच्छही फल हुआ। पर अभी कुछदिन हुए, इसी रेलवे स्टेशन