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सम्पति-शास्त्र


हो जाय ता समिति के द्वारा उसके कुटुम्बियों को भी सहायता दी जाती है । व्यवसाय-समितियों से मजदूरों का बहुत उपकार होता है। इंगलैंड में इस तरह के समाजों की प्रसिद्धि विशेष करके इस कारण हुई है कि ये मजदूरों का चेतन बढ़ाने और उनके काम के बंटे कम कराने का बहुत प्रयत्न करते हैं। पहले धे मजदूरों की तरफ से कारखाने वालों के साथ लिखा पढ़ी करके मजदूरों की शिकायतें दूर कराने का यन करते हैं। यदि उनको अपने प्रयन में सफलता नहीं होती और वे देखते हैं कि उनकी शिकायतें धाजबी है तो वे हड़ताल करा देते हैं । इसी से कारखानों के मालिक इस तरह की समितियों को पसन्द नहीं करते। वे उन्हें हमेशा उखाड़ने की फिक में रहते हैं--हमेशा उनसे हेप रखते हैं। सभासदों के फ़ायदे के लिए व्यवसाय-समितियां और भी बहुत सी चाते करती है । समिनि के प्रधान कर्मचारी यह देम्पते रहते हैं कि समिति के सभासदो को कारयानों में कोई तकलीफ़ तो नहीं । एक तो सभासद् खुद ही अपनी तकलीफें समिति में बयान करते हैं। परन्तु यदि कोई वात पेसी हानिकारक होती है जिससे मजदूरों की हानि तो धीरे धीरे होती है, पर वह फौरन ही उनकी नज़र में नहीं पाती, ता समिति के कर्मचारी उसे उनको सुझा देते है और उसे दूर करने की फ़िक करते हैं। किसी किसी कारखाने की इमारत ऐसी होती है कि उसके भीतर हवा अस्त्री तरह नही जाती : अथवा वहां इतनी गन्दगी रहती है कि मजदूरों के बीमार पड़ने का डर रहता है 1 कहीं कहीं बड़ी बड़ी कलों और यजिनौं पर काम करने वालों की प्रागा रक्षा का ठीक ठीक प्रबन्ध नहीं रहता- उनकी जान जाने का खतरा रहता है। समिति के करमचारी ऐसी ऐसी बातों की खबर रखने है पीर कारखानदारों को सूचना देकर, उनसे प्रार्थना करके, और जरूरत पड़ने पर लड़ झगड़ कर के भी, मजदूरों का हितसाधन करते हैं। यदि इस तरह की शिकायतें एक आदमी करे तो उसकी बात शायद ही सुमी जाय कारखानेदार कहदंगे कि तुम्हारे पाराम के लिए हम इतना रुपया नहीं खर्च करने जाते । तुम्हारा जी चाहे काम करो, न जो चाहे चले जाय । परन्तु समिति को मध्यस्थ करके जब मज़दूरों का सारा समुदाय अपनी शिकायतें दूर कराने पर आमादा हो जाता है तब कारखाने वालों को उनकी मात सुननी ही पड़ती है। क्योंकि यदि वे पेसा न करती हड़ताल हो जाने.