से उनका व्यवसाय ही बन्द हो जाय, या यदि न भी बन्द हो तो काफ़ी
मज़दूर न मिलने के कारण उन्हें बहुत बड़ा हानि उठानी पड़े। इस सम्बन्ध
में मजदूरों चार समिति के कर्मचारियों को यह याद रखना चाहिए कि वे
कारखानेदारों से कोई ऐसी वात कराने का हठ न करें जो न हो सकती हो,
या जिसमें बर्च इतना हो जिसे कारखानेदार न उठा सकता है। उनकी
दरश्चास्तें हमेशा वाजिब पारः मुनासिव होनी चाहिए ।
व्यवसाय-समितियों को कोई ऐसा काम न फरना चाहिए जिससे सर्व-
साधारण को हानि पहुँचे । कल्पना कीजिए कि टोपो बनानेवालों ने एका
करके एक समिति स्थापित की और अपने सभासदों के लड़कों या कुट-
ग्वियों को छोड़ कर नौरों को टोपी बनाना सिखलाने से इनकार कर दिया।
उसका परिणाम यह होगा कि कुछ दिनों में टोपी बनानेवालों की संख्या
कम हो जायगी और टोपियों का दाम चढ़ जायगा। सम्भव है, ये लोग
पहले ही से टोपियों का दाम बढ़ा दें। इस दशा में इन लोगों को ज़रूर
फायदा होगा, पर, सर्वसाधारण के ऊपर एक प्रकार का टिकस सा लग
जायगा। टोपियां मोल लेने में जितनी कीमत उन्हें अधिक देनी पड़ेगी
उतना मानों उन्हें टिकस देना पड़ा । इसी तरह यदि दरजी, मोची,
लुहार, बढ़ई सभी एका करके अपने अपने पेशे के आदमियों की संख्या
परिमित कर दें तो सब चीजें महंगी हो जाये और सर्व-साधारछ को सिर्फ
कुछ पेशेवालों के लाभ के लिए व्यर्थ हानि उठानी पड़े । इस तरह का एका
अच्छा नहीं। वह स्वार्थपरता से भरा हुआ है। अतएच ऐसी बातों को
कानून के रू से गवर्नमेंट को रोक देना चाहिए।
परन्तु मजदूरों की उचित शिकायतों को दूर कराने और उन्हें उनके
उचित हक दिलाने के लिए व्यवसाय-समितियों का होना बहुत ज़रूरी है।
५स देश में भी प्रेसमैन, कम्पाजिटर, चिट्ठीरसा, तारवावू, स्टेशनमास्टर,
खलासी, पुतलीघरों और अन्यान कारखानों के मज़दूर आदि लोगों को
ज़रूर ऐसे ऐसे समाज स्थापित करना चाहिए । उनके द्वारा उन्हें इस बात
की जांच करनी चाहिए कि उनके हक उन्हें मिलते हैं या नहीं। यदि विना
इस तरह की समितियों के पाज कल कोई हड़ताल करेगा तो सफलता की
बहुत कम सम्भावना है। हड़तालों की सफलता के लिए सब लोगों को
सहायता और सहानुभूति को बड़ी ज़रूरत है।
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व्यवसाय समिति