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सम्पत्ति-शास्त्र।


जाय । टुडियों के चलन ने इस बाधा और इस ज़िम्मेदारी को बिलकुलही दूर कर दिया है । कल्पना कीजिए कि कलकत्ते के गोपीनाथ रमामोहन ने ५०,००० रुपये का गल्ला इंगलैंड के व्यापारी बेकर ग्रे के हाथ घेचा । और इंगलैंड के व्यापारी रालो ब्रदर्स ने ५०,००० रुपये का कपड़ा कलकत्ते के व्यापारी कर, तारक एंड कम्पनी के हाथ वैचा । अब यदि इंडियों का चलन न होता तो यह सब रुपया नकद देना पड़ता । पर इंडियों के प्रचार के कारण यह झंझट नहीं करना पड़ा। रालो ब्रदर्स और बेकर ने ये दोनों हूँग- लैंड के व्यापारी हैं । एक ने माल खरीदा है, दूसरे ने बेचा है। अर्थात् एक को रुपया पाबना है दूसरे को देना है। इसी तरह गोपीनाथ रमामोहन पार कर, तारक पेंड कम्पनी हिन्दुस्तान के व्यापारी हैं । अतपच यदि चेकर ग्रे ५०,००० रुपया राली ब्रदर्स को इंगलैंड में देदें और कर, तारक पेंड कम्पनी उतनाही रूपया गोपीनाथ रमामोहन को देदें तो काम बन जाय । किसी को विदेश रुपया भेजने की ज़रूरत न पड़े। यह इस तरह होता है कि हूँगलैंड का व्यापारी बैंकर ये हिन्दुस्तान के व्यापारी गोपीनाथ रमामोहन । को एक चिट्टी (हुंडी) लिख देता है कि हम तुम्हें ५०,००० रुपया देंगे । इसी तरह हिन्दुस्तान का व्यापारी कर, तारक ऐड कम्पनी इंगलैंड के व्यापारी राली ब्रदर्स को एक चिट्ठी (हुंडी) लिख देता है कि हम तुम्हें ५०,००० रूपया देंगे । अर्थात् एक की हुंडी हिन्दुस्तान पर लिखी गई, दूसरे की ईंग- लैंड पर । इन दोनों टुंडियों की अदला बदल हो जाने से दोनों देशों के व्यापारियों का पावना, ये रुपया पैसा भेजे, चुकता हो जाता है। इंडियों की अदला बदर बहुधा व्यापारी खुददी नहीं करते । लन्दन, कलकत्ता और धवई आदि बड़े बड़े शहरों में इंडियों के दलाल रहते हैं। वही भिन्न भिन्न देशों पर लिखी गई हुंडियां खरीद करते हैं। ऊपर के उदा- हरण में गोपीनाथ रमामोहन पार राली ब्रदर्स अपनी इंडियों का खुदही अदला बदल न करेंगे । गोपीनाथ रमामोहन अपनी हुंडी कलकत्ते में हुडियों के दलाल को कुछ कमीशन देकर बेच देगा और राली ब्रदर्स अपनी हुँडी लन्दन में इसी तरह येच देगा । इस सौदे में यदि कुछ हानि होगी तो सिर्फ थोड़े से कमीशन अर्थात्व की । बस, और कुछ नहीं । परन्तु ५०,००० रुपया यदि नकद भेजना पड़ता तो उससे कई गुना अधिक खर्च पड़ता । लन्दन और कलकत्ते के जो दलाल इंडियों का रोज़गार करते हैं घे इसी तरह हुडिया