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सम्पत्ति-शास्त्र


सम्पत्ति-शास्त्र के जो उद्देश हैं उनकी सिद्धि के लिए नीचे लिखी हुई बातां का विचार करना पड़ता है।---..

(१) जिन बातों से मनुष्य. सम्पति की उत्पत्ति वृद्धि और रक्षा कर । सकता है उन्हें जानना ।

(२) सम्पन्ति की उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा में जो प्राकृतिक कारण प्रधान है उन्हें कैद निकालना ।

(३)जिन राजकीय, व्यावहारिक पार आद्योगिक वातों का सम्बन्ध सम्पत्ति की उत्पत्ति, वृद्धि भार रक्षा से है उनका ज्ञान प्राप्त करना।

(४)सम्पत्ति के सम्बन्ध में मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति कैसी है?

नई नई ज़रूरतें पैदा होने से सम्पत्ति पर क्या असर पड़ता है ? ज़मीन का . लगान, व्यापार की चीजों पर महसूल पार अनेक प्रकार के कर लगाने के नियम क्या हैं? इन, तथा पार भी ऐसी ही सम्पत्ति-विपयक बात का निर्णय करना।

इन अनेक वातां का विचार करके सिद्धान्त निश्चित करने में सम्पत्ति- शासन के पण्डितों को कई शास्त्रों से सहायता लेनी पड़ती है, क्योंकि सम्पत्ति-शास्त्र में पार शास्त्रों के सिद्धान्तों का भी मेल है। यह शास्त्र मनुप्य के जीवन से सम्बन्ध रखनेवाली व्यावहारिक बातों की जांच करके उन्हीं के आधार पर व्यापक सिद्धान्त निस्चित करता पार यह दिखलाता है कि किस प्रकार के व्यवहार का क्या नतीजा होता है। मामको व्यवहारों और घटनाओं से इन सिद्धान्तों का मुकावला करना, इनकी सत्यता अथवा असत्यता की जांच की कसौटी है। पर सव मनुष्यों के व्यवहार और जीवन-घटनामों का पूरा पूरा शान एकदम होना संभव नहीं । इसी से इस शाला के सिद्धान्तों में फेर फार की ज़रूरत होती है। नई नई बातों और घटनामों के ज्ञान के साथ ही साथ इस शास्त्र के सिद्धान्तों को व्याप- कता बढ़ती है।

सम्पत्ति-शास्त्र के विचार में, जैसा ऊपर कहा गया है, और शास्त्रों का भी काम पड़ता है । उनको मदद से सम्पति-भान के सिद्धान्त निश्चित किये जाते हैं। रसायनशास्त्र, नीति-शास्त्र, सीवन-शास्त्र आदि की मदद लिये बिना इस शाला के सिद्धान्त नहीं निश्चित हो सकते ।