पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/२९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७४
सम्पत्ति-शास्त्र।

जायगा । इसी तरह यदि जर्मनी में तैयार हुई लोहे की योजें हिन्दुस्तान की भेजने में ईंगलंड की चीज़ों को अपेक्षा अधिक गन्नई पड़ेगा तो इंगलैंड ही की बनी हुई चीजें यहां अधिक चेंगी । | जैसे एक आदमी अपनी उत्पन्न या तैयार की हुई कम आवश्यक चीज़ों के बदले दूसरों की उत्पन्न या तैयार की हुई अधिक आवश्यक चीज़ लेता है, उसी तरह एक जाति या एक देश अपनी कम अवश्यक चीज़ों के बदले दूसरी जाति या दूसरे देश की अधिक आवश्यक चीजें बदले में लेता है । इस देश में रुई, रेशम और चाय बहुत होती है। उन सबकी इसे आवश्यकता नहीं । उधर इंगलैंड में यंत्र अदि लोहे की चीजें इतनी होती हैं कि उन सब की उसे आवश्यकता नहीं । अतएव इन दोनों देशों की इन चीजों के प्रयोजनातिरिक्त अंश का परस्पर वदला होजाता है। कौन चीज़ कहां कम पैदा होती है और किस समय कौन चीज़ किस देश में भेजने से अधिक लाभ हा सकता है, ये बातें सिर्फ तजरुबैकार व्यापारी ही जान सकते हैं । जिस का तजरुर और जिसका विदेश-व्यापार-झान जितना अधिक होता है घर बैदेशिक व्यापार से उतना ही अधिक लाभ उठाता है। व्यापार-सम्बन्धी महत्वपुर्ण खातों को जानना सबका काम नहीं । कभी कभी बड़े बड़े तजसकार व्यापारियों से भी भूलें होजाती हैं जिनके कारण उन्हें बहुत नुक़सान उठाना पड़ता है। दो देशों में व्यापार जारी होने से जो लाभ होता है उसका विवेचन यहां तक थौड़े में किया गया । वैदेशिक व्यापार की बदौलत एक तो अपने "देश में न होनेवाली चीजें विदेश से मिल जाती हैं। दूसरे प्रत्येक देश की उत्पादक शक्ति पूरे तौर पर उपयोग में जाती है। श्रम-बिभाग से जैसे श्रम की उत्पादक शक्ति से पूरा पूरा लाभ होता है वैसे ही दो देशों के दरमियान 'परस्पर व्यापार होने से भी होता है । सब चीज़ सब देशों में नहीं हो सकतीं और यदि हो भी सकती हैं तो अच्छी नहीं हो सकतीं । कुछ चीजें किसी देश में अच्छे होती हैं, कुछ किसी में । सव कहाँ सब चीजें पैदा करने का सुभीता भी नहीं होती। जिस चीज़ के पैदा या तैयार करने फा जहां अच्छा सुभीता नहीं वहां उसे पैदा था तैयार करने से मेहनत और पूजी दोनों का बहुत कुछ अंश व्यर्थ जाता है । यदि सब देश अपने ।