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विदेशी व्यापार।

दिया कि उसकी पतन बन्द हो गई । थट्ट प्रतियोगिता का फक्त है । यदि इँगलंड इस देश के साथ चढ़ा ऊपरी करने की इच्छा न रखता है। उसे कर लगाने की ज़रूरत न पड़ती। इस कर के जवधि में हिन्दुस्तान की भी चाहिए था कि वह इंगलैंड के सायात माल पर कर लगा देती ! पर इस देश को राज्यसूत्र अँगरेज़ी हाँ के हाथ में होने के कारण उन्होंने ऐसा करना मुनासिंध न समझा । उन्होंने अपने देश के वने कपड़े का हिन्दुस्तान में अधिक ब्रप होने का द्वार खोल कर यहाँ के कपड़े की रफ्तनी का द्वार प्रायः बन्ध कर दिया। इससे यहां का चस्र-व्यवसाय मारा गया और इंगलैंड का चमक उठा। इस विषय पर, आगे चल कर, एक अलग परिच्छेद में, हमें बहुत कुछ लिस्रना हैं। इससे यहां पर अधिक लिखने की जरूरत नहीं । । प्रतियोगिता के कारण बिदेशी चीजों की आमदनी में बहुत बाधा आती है। कारखानेदारों अथवा पदार्थ-निर्माताओं में प्रतियैागिता होने से पदार्थों का मूल्य कम हो जाता है; और खरीदारों में प्रतियोगिता हेाने से चढ़ जाता हैं। इस तरह जिन देश में चीजें पैदा होती हैं और जो देश उन चीज़ों कैर लेते हैं उनमें प्रतियेगिला होने से चीज़ों के मूल्य में कमी-बेशी है। जाती है। भारतवर्ष, रूस, अमेरिका और अस्ट्रेलिया में गेहूं अधिक पैदा होता है। इनमें से जो देश कम मूल्य पर गेहू बेचने में समर्थ होगा उसी देश का गेहूं इंगलैंड, जर्मनी और फ्रांस आदि देशों की अधिक जायगा । और इन गलैंड, जर्मनी और फ़ॉस अादि देशों में से जो देश अधिक मूल्य पर गेहूं बरीद करने पर राज़ी होगी उसी देश के भारतवर्ष, रूस अमेरिका और अस्ट्रेलिया का गेहूं अधिक रवाना है ! अमेरिका में लोहे की अपेक्षा गैहू में अधिक छाम है और गले में गेहूं की अपेक्षा लोई में । इस से इंगलैंड का गेहूं अमेरिका में नहीं बिक सकला । किन्तु अमेरिका का गहू इंग्लैंड में बिक सकता है। गेहू के व्यवसाय में अमेरिका भारतवर्ष में प्रतियोगिता करता है, इससे भारतवर्ष के गेहूं की रफ्तनी गलैंड को होसकेगी । इसी तरह गलैंड की अपेक्षा जर्मनी में लौहा कुछ सस्ता पड़ता है। इस से जर्मनी में बनी हुई लाहे की चोर्जे भारतवर्ष में असिर्फ गरे । परन्तु भारतवर्ष से ईगलैड जानेवाले गेहूं.पर भेजने का मार्च यदि अमेरिका की अपेक्षा अधिक पढ़ेगा है। भारत का गेहूं न जाकर अमेरिका हो को ३३ ।