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सम्पत्ति-शास्त्र।

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एक दूसरे से परस्पर परिचित हैं। परन्तु यह बात हमेशा सम्भव नहीं । परिचय है या न हो, अन्तर्विनिमय और बहिर्विनिमय में माल के मूल्य का विनिमय प्रायः इसी तरह हो जाता है।

जिस तरह डाकखाने में रुपया जमा करके मनीआर्डर द्वारा रुपया भेजा जाता है, उसी तरह, जैा लाग हुंडी का कारोवार करते हैं और भिन्न भिन्न शहरों में इस काम के लिए दुकाने रखते हैं, उनके द्वारा भी ध्यापारी आदमी रुपया भेज सकते हैं । चैड़ा रुपया डाफख़ाने की मारफ़त भेजने से कम व पड़ता है । पर यदि हज़ार देा हज़ार भेजना है। ता अधिक कमीशन देना पड़ता है। क्योंकि डोकवाने के फमीशन का निर्ख रुपया सैकड़ा है। अब यदि ईडी का कारोबार करनेवाले भी अपना निर्ब इतना हो रखेंगे ता क्यों केाई उनकी मारफत रुपया भेजेगा ? फिर डाकखाने ही के द्वारा भेजने में लेागों की अधिक सुभीता होगा । अथवा, भहीं है, अपने आदमी के हाथ लेाग रेल से रुपया भेज देंगे। इसी से हुंडी कै ध्यब सायी कम मर्च पर रुपया भेजने का कारोबार करते हैं । यथार्थ में चे रुपया भैज्ञने नहीं, किन्तु संकई पछै कुछ अधिक रुपया लेकर हुडी लिङ्ग देते हैं । वह मुंडा हो रुपये का काम करती है। जब किसी जगह से व्यापारी लोग बहुत रुपया बाहर भेजने लगते हैं तब वहां हुडी का फारेवार खुल जाता हैं। इस कारावार के करनेवाले मुंडियां ( यहां पर ड्राफ्टस' (Drafts) से मतलब है ) बॅचकर व्यापारियां से रुपया लेते हैं। साथ ही सैकड़े पीछे कुछ अधिक हुडियावन भी लेते हैं। अर्थात् जी लौग रुपया देकर किसी ..और देश या मर शहर के लिए मुंडी बरीद करते हैं उनकेा, हुंडी का ध्यवसाय करनेवाले महाजन या वैकर उस देश या उस शहर की अपनी गही या दुकान के नाम, एक पत्र लिखकर दे देते हैं। उसमें लिखी रहता है कि जा रकम उसमें लिखी है वइ हुंडी श्रीदनेवाले की, या जिसे वह कह दे उसे, देदी जाय । इस प्रकार दूसरे देश या दूसरे शहर में इच्छानुसार रुपया प्राप्त कराने का सुभीता कर देने के बदले महाजन लोग हुंडी खरीद करने वाले से सैकड़े पीछे कुछ अधिक लेते हैं। किसी खास देश या खास शहर के लिए हुड़िये की माँग जितनी ही अधिक होती है सैकड़े पीछे हैद्धियाचन भी उतना ही अधिक देना पड़ता है।