पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३३५

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सम्पत्ति-शास्त्र । तो भी वही लेनी चाहिए। माल स्वदेशी हो या विदेशी, संता होना चाहिए । लोग सस्तेपन को देखते हैं। और उनकी यह समझ उनका यह च्यचहार-अस्वाभाविक भी नहीं। कौन ऐसा आदमी है जो अपने को व्यर्थ हानि पहुँचाना चाहेगा ! देश-वत्सलता में मत्त हो कर जो लोग सस्ती और अली विदेशी चीजें न लेकर, अपने यहां की बुरी और मँहगी चीजें लेते हैं उन्हें बहुत हानि उठानी पड़ती है। " कल्पना कीजिए कि आप के घर के पास ही पानी का एक नल है । उसका पानी मीठा है; पर म्यूनिसिपैलिटी को १२ रुपये साल दिये बिना प्रापफी वह पानी नहीं मिल सकता ! कुछ दूर पर आप को एक बार है; उसमें एक कुवाँ है । उसका पानी उतना अच्छा नहीं जितना कि नल का पानी है । तथापि आप ठहरै अपनी चीज़ के प्रेमी | आपने एक कद्वार दो रुपये महीने पर पानी लाने के लिए नौकर रखा और उससे अपने धागे धारे का पानी मैंगाने लगे। फल यह हुआ कि साल में १२ के बदले अप को २४ रुपये स्वच करने पड़े और फिर भी पानो अच्छा न मिला। यही नहीं, किन्तु नल की अपेक्षा वें में पानी भी थोड़ा गया । अर्थात् तीन तरह से आप का नुकसान हुआ । इ, उस कार को अपने मजदूरी दी। पर यदि वद्द आप से दो रुपये महीने न पाता हो या बह भूखी थोड़ी ही मर जाता है वह किसी का चौका-बर्तन करके दो रुपये कमा लेता । | इसी तरह के उदाहरण और चीज़ों के विषय में भी दिये जा सकते हैं। जैसी अच्छी विदेशी फुलान हम दो रुपयै गन के हिसाब से मिल सकती है वैसी के लिए हमें कानपुर की " ऊलन मिल्स" को ३ या ४ रुपये गज़ सक देने पड़ते हैं। फिर भी कई बातों में वह विदेशी फुलालैन की बराबरी नहीं कर सकती । विदेशी हीन या लट्टे के बदले यदि हम कानपुर या नागपुर की ज़ीन या लङ्कर लेते हैं तो भी कई तरह से हम घाटे ही में रहने हैं। यम० डी० फ़ासैट नाम को एक प्रेम में अँगरेजी में सम्पत्ति-शास्त्र पर एक पुस्तक लिङ्गी है । इस पुस्तक की नव अावृत्ति १९०४ में निकली थी। उसमें वन्धनविहित व्यापार की हानियों के कई उदाहरण दिये गये हैं। उनमें से एक उदाहरण जेठीभद नामक दवा का है। इसका पौधा होता है। ट्रफी में स्मन नगर के आस पास यह अधिकता से पैदा होता है । चहां यह चीज़ तैयार करके इंगलैंड भेजी जाती है। परन्तु अमेरिका ने