पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३६७

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३४८ सभ्यत-शास्त्र । नमक पर कर लगा कर' गवर्नमेंट ने जो उस पर अपना एकाधिकार कर रखा है से किसी तरह उचित नहीं ! सम्पतिशास्त्र के वेत्ताओं की राय है कि जीवन-निर्बाह के लिए जिन चीज़ों की अमीर-गरीब सब की एक सी ज़रूरत रहती है उन पर फर म लगाना चाहिए । कर उन्हीं चीज़ों पर लगाना चाहिए जो निर्वाह के लिए अत्यावश्यक न समझी जाती हौं । अर्थात् चिलास-द्रव्यों पर ही कर लगाना मुनासिब है । इस के पहले परिच्छेद में लिखा जा चुका है कि जितनी आमदनी जीविका-निर्वाह के लिप ज़रूरी समझी जाती है उस पर कर नहीं लगता । इसी नियम के अनुसार गवर्नमेंट हज़ार रुपये से कम आमदनी घालों से इन्कमटैक्स नहीं लेती। परन्तु इस नियम का परिपालन च'परोक्ष करों के चिपय में नहीं करतीं । जो आदमी यह कबूल कर ले कि जिन की आमदनी जीविका-निर्वाह ही भर के लिये है उनसे कर न लेना चाहिए , उसे यह भी क़बूल करना चाहिए कि जो धिका-निर्वाह की अावश्यक धीज़ों पर भी कर लगाना अनुचित है। कोच के सामान, रेशमी कपड़े, क्रीमती दवाइयां इत्यादि पर यदि कर लगाया जाय तो मुनासिब है । इन चीज़ों फी सिर्फ समर्थ लोग ही ले सकते हैं। और जिनके पास इन विलास-द्र के लेने के लिए इन्य होगा वे इन पर का कर भी सहज ही दे सकेंगे। पर नमक ऐसी चीज़ है जिसे, दो आने गैज़ कमाने वाले मज़दूर ही के नहीं, किन्तु भीख मांग कर दो पसे लाने वाले भिग्वारी को भी, मौल लेना पड़ता है। वह चिलास-द्रय नहीं। अतएव उस पर कर लगाना अनुचित है। • उपजीविका के चश्यक पदार्थों पर कर लगाने का परिणाम कभी अच्छा नहीं होता ! कर लगाने से चीज़ों की क़ीमत बढ़ जाती है। इससे गरीब भादमियों को वै चीजें यथेष्ट नहीं मिल सकती । मान लीजिए कि ची महंगी चिकने पर भो, गरीब मज़दूरों की मज़दूरी का निर्व बढ़ जाने से, उनकी कोई हानि नहीं होती । तथापि यह मनिनाही पड़ेगा कि मज़दूरी अधिक होने से फरिबानैदारों और व्यवसायियों के मुनाफे की मात्रा फर्म हो जायगी । और मुनाफ़ा कम हो जाने से पूँजो कम हो कर मज़दूरी का निख़ भी कुछ दिन में ज़रूरही कम हो जायगा ! यदि कारखानेदार और व्यवसायी अपनी पूंजी से अधिक मज़दूरी न देकर अपने हिस्से की प्राप्ति से मज़दूरी देंगे तो खुद उनकी हानि होगी । इन दो वादों में से एक बात