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विषयारम्भ।


क्योंकि सूत में एक विशेषता पैदा हो जायगी-उसको क़ीमत बढ़ जायगी। इसी तरह हाथ के बने हुए चाकू, को जितनी ज़न्न होती है कल से बने हुए की उससे अधिक होती है। इसका कारण उसमें विशेषता का पैदा हो , जाना ही है ! यह पान-सम्बन्धी उदाहरण हुआ।

अतएव देश, काल पार पान के ही संयोग से पदार्थों में विशेषता या वन पैदा होती पार बढ़ती है । और इसो विशेषता या कद्र के पैदा होने या बढ़ने का नाम सम्पत्ति को उत्पत्ति है । जो चीज़ पहले नहीं थी उसकी उत्पत्ति से मतलब नहीं । जो थी हो नहीं वह उत्पन कैसे हो सकेगी। उसका ताजिक ही नहीं।

यद्यपि देश, काल और पात्र के संयोग से पदार्थों में विशेषता आ जाती, है. तथापि सम्पत्ति की उत्पत्ति के प्रधान साधन ज़मीन, मेहनत और पूंजी हैं। अर्थात् यदि ये तीन प्रधान साधन न हो यो देश, काल और पात्र का संयोग विशेष कारगर न हो । पदार्थों में विशेषता उत्पन्न होने के पहले ज़मीन, मेहनत और पूजी की ज़रूरत होती है। चाहे जिस चीज़ को लीजिए, विचार- परम्परा के अन्त में आपको मालूम हो जायगा, कि उससे इन तीन साधनों का अखण्ड सम्बन्ध है । अतएव जमीन, मेहनत और पूजी सम्पत्ति की उत्पत्ति के प्रधान साधन है। देश, काल पार पात्र गौण साधन । गौण साधनों के उदारण ऊपर दिये जा चुके हैं। प्रधान साधनों के भी उदारण लीजिए:-

(क) आपके बदन पर जा कोट है वह लुधियाने के चारखाने का है न ? अच्छा, तो फिर यह रुई का है । रुई से ही सूत तैयार किया जाता है, जिसका चारखाना बनता है । और (कपास) जमीन से पैदा होती है। इसलिए आपकी कोट रूपी सम्पत्ति पैदा होने का एहला प्रधान कारण या साधन जमीन हुई।

(ख) कपास बोने, निकाने, पोनने, मोटने, सूत कातने, उस सूत का चारखाना बनाने और फिर उसे सिलाने में मेहनत पड़ती है। बिना मेहनत के ये सब काम नहीं हो सकते । अतएव कोर की उत्पत्ति में मेहनत दूसरा कारण हुई।

(ग) ज़मीन जोतने, बिनौले वाने, कपास बीनने, सूत कातने और चारकाना तैयार होकर कोट बनने तक न मालूम कितने आदमियों को