पृष्ठ:सम्पत्ति-शास्त्र.pdf/३७

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दुसरा भाग । सम्पत्ति की उत्पत्ति अथवा धनागम ।


9:०० पहला परिच्छेद ।

विषयारम्भ । """"""हम यह कहते हैं कि अमुक सम्पत्ति की उत्पत्ति हुई तब उसमें - यह मतलब नहीं कि वह पहले थी ही नहीं 1 अनस्तित्व में । अन्तित्य की प्राप्त होनेअभाव से भाव को प्राप्त होने से 5. हमारा मतलब नहीं । अभाव में भाव को होना असम्भव tes है। उम्पत्ति में सिर्फ इतना ही मनलब हैं कि किसी वस्तुधियों में कोई नई बात दा हो गई। उनकी असलियत के लिहाज़ से उसमें कोई विशेषना आगई । ऋह विशेषतः देश, काल और पात्र के रसंग में पैदा होना है। उदाहरण: ( क ) काश्मीर में बर्फ की इतनी अधिकता है कि वहां उसे केाई नहीं पूछता, वहाँ उम्मको कुछ भी क़द्र नहीं । वही चर्फ यदि कानपुर लाई जाय नै उनमें चिोपता पदा हो जाये । अथवा लीची की दीजिए । थह फल मुजफ्फरपुर में इतना पैदा होता है कि वेधुन मस्ता विकता है । यदि वही फलकत्ते ले जाकर बेचा ज्ञाय ना उनमें विशेषना आ जाय, उसकी क़द्र वह लाय: उम्मकी क़ोमन अधिक हो जाय । यह देश की बान हुई । ( ख ) माय-पूस में बर्फ को प्रायः चिन्तकुल ही क़द्ध नहीं होती । पर यदि उने गरमियां नक किन नरद रम्र म्न हैं। उन को व क़द्र हो । उसमें एक विशेषन्दा पैदा हो जाय । इसी नरह नया चावल यदि वर्ष दा धर्ष रम्न छाड़ा जाय तो उसमें भी विशेषता पैदा हो जाय और उसकी क़ीमत बढ़ जाय । यह काल के संयाग का उदाहरण हुआ । (ग) किसान हैं। एक मन कई की है। क़ीमत मिलती है, उतनी ही , माई का यदि सूत कात जाय नी कातनेवाले के उससे अधिक क़ीमत मिले,