पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

उन्नीस


उपलब्ध प्रमाणोंके अनुसार, गांधीजीने पहला प्रार्थनापत्र १८९४ में लिखा था। बादमें तो, मालूम होता है, उन्होंने प्रार्थनापत्र लिखनेका ताँता ही बाँध दिया। अपने सार्वजनिक कार्यकी इस प्रारम्भिक अवस्थामें गांधीजीने अन्यायके निराकरणके लिए तथ्योंको प्रकाशित करने और तर्कोंके द्वारा अन्यायीकी सद्बुद्धि तथा अन्तरात्माको प्रभावित करनेका तरीका अपनाया था। दक्षिण आफ्रिकामें बारह वर्षतक इस पद्धति का प्रयोग करनेके बाद ही वे इस निष्कर्षपर पहुँचे कि जब निहित स्वार्थवाले लोग तर्कको माननेसे इनकार करें तब सत्याग्रह या सीधी कार्रवाई करना जरूरी हो जाता है।

पाठकोंको स्मरण रहे कि इस खण्डमें जिस कालकी गतिविधियाँ दी गई उसमें गांधीजी अपनी उम्रकी बीसीमें ही थे। उनके लेखों और भाषणोंसे उल्लेखनीय आत्मसंयम तथा सौम्यता, कठोर सत्यपरायणता और विरोधीके दृष्टिकोणके प्रति पूर्ण न्याय करनेकी इच्छाका परिचय मिलता है। उनके स्वभावमें ये गुण सारे जीवन उनके साथ रहे।