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१३९. पत्र : लिओ टॉल्स्टॉयको

जोहानिसबर्ग
ट्रान्सवाल, दक्षिण आफ्रिका
अप्रैल ४, १९१०

प्रिय महोदय,

आपको स्मरण होगा कि जब मैं कुछ समयके लिए लन्दनमें था तब मैंने आपसे पत्र-व्यवहार किया था। आपके एक विनम्र अनुयायीकी हैसियतसे मैं इसके साथ अपनी लिखी हुई एक पुस्तिका भेज रहा हूँ। यह मेरी एक गुजराती रचनाका मेरा ही किया हुआ अनुवाद । एक अजीब-सी बात यह हुई है कि मूल पुस्तिका भारत सरकार द्वारा जब्त कर ली गई है। इसलिए मैंने अनुवादके प्रकाशनमें जल्दी की है। मेरी इच्छा तो यही है कि आपको परेशान न करूँ। परन्तु यदि आपका स्वास्थ्य गवारा करे और आप इस पुस्तिकाको देख जानेका समय निकाल सकें तो, कहनेकी आवश्यकता नहीं कि, मैं इस रचनाके बारेमें आपकी समालोचनाकी बड़ी कद्र करूँगा । एक हिन्दूके नाम लिखे हुए आपके पत्रकी कुछ प्रतियाँ भी मैं आपके पास भेज रहा हूँ। आपने मुझे इसको प्रकाशित करनेका अधिकार दे दिया था। भारतीय भाषाओं में से एकमें अनुवाद भी इसका हो चुका है।

मो० क० गांधी

काउंट लिओ टॉल्स्टॉय

यास्नाया पोल्याना

रूस
[ अंग्रेजी से ]

डी० जी० तेन्दुलकर लिखित महात्मा, खण्ड १ में प्रकाशित मूल टाइप की हुई प्रति, जिसपर गांधीजीके हस्ताक्षर हैं, के ब्लॉकसे । १. टॉल्स्टॉयके उत्तरके लिए देखिए परिशिष्ट ३ २. देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ४४३-४५ और ५३३-३४ । ३. हिन्द स्वराज्य या इंडियन होमरूल, देखिए पृष्ठ ६-६९ । ४. इस पत्रका गांधीजीने गुजराती में अनुवाद किया था जो इंडियन ओपिनियन, २५-१२-१९०९ और १-१-१९१० के अंकोंमें छपा था । यह एक पुस्तिकाके रूपमें भी प्रकाशित हुआ था । १०-१५