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२५३. पत्र : मगनलाल गांधीको

[ टॉल्स्टॉय फार्म ]
श्रावण बदी १ [ अगस्त २१, १९१० ]

चि० मगनलाल,

जहाँतक बने हफ्ते में एक पत्र तो लिख ही दिया करो।

मैं आनन्दलालका पत्र तुम्हें भेज चुका हूँ ।

जो शाक-सब्जी तुमने भेजी है उसका मूल्य यहाँ [ सत्याग्रह-कोषमें से ] देनेका प्रबन्ध करूंगा। तुमने जितनी सब्जी भेजी है उतनी यहाँ खरीदें तो भी उतनी ही रकम लगेगी। सब्जियाँ कम खर्चमें कैसे भेजी जा सकती हैं इसकी ज्यादा जानकारीके लिए वहाँकी शुल्क-सूची (टैरिफ बुक) देख जाना । किन्तु तुमने जो शाक-सब्ज़ी आदि भेजी है उसके पीछे जो भावना है उसका मूल्य नहीं आँका जा सकता। दूसरे लोग सत्याग्रहियोंके लिए आवश्यक वस्तुएँ जुटा देते हैं, यह एक महत्त्वकी बात है। अगर ये लोग [ये वस्तुएँ] मिलकर भेजें तो रेलभाड़ा बहुत न पड़े। उन्हें ऐसा समझाना कि जो खासी कमाई करते हैं उनका थोड़े-बहुत भाड़ेसे डर जाना तो लज्जाजनक है।

बाबू तालेवन्तसिंहने क्या भेजा है, सो मेरे देखनेमें नहीं आया है। मूंगफलियाँ और शाक धनजीकी ओरसे, तथा कम्बल और फलालेन राघवजीकी ओरसे मिले हैं। इन चीजोंमें से कुछ बाबू तालेवन्तसिंहकी ओरसे आई हों तो उसके अनुसार सुधार कर लेना । मुझे बाबूजीका जो पत्र मिला था, उसमें भी उपर्युक्त व्यक्तियोंकी ओरसे ही सामान भेजे जानेकी बात लिखी थी।

चंचीको पहुँचानेके लिए हरिलालका [ भारत ] जाना ठीक नहीं। हम गरीब हैं। पैसा इस प्रकार नहीं खर्च किया जा सकता । और फिर, [ सत्याग्रह ] संघर्षमें लगा हुआ व्यक्ति इस तरह तीन माहके लिए नहीं ज सकता । चंचीको अच्छा साथ मिल जाये, तो वह चली जाये, इसमें कोई हर्ज नहीं है। बहुतेरी गरीब स्त्रियाँ यही करती हैं। हम अपने परिवारकी स्त्रियोंको नाजुक नहीं बनाना चाहते। मैं तो किसान हूँ और चाहता हूँ कि तुम सब भी किसान बन जाओ और अगर हो सके तो हमेशा किसान ही बने रहो। मेरी दिनचर्या यहाँ बिलकुल बदल गई है। सारा दिन लिखने और लोगोंको समझानेके स्थानपर अब जमीनकी खुदाई इत्यादि मेहनत-मजूरीके काम करनेमें बीतता है। यह मुझे अधिक अच्छा लगता है। मैं इसीको अपना कर्तव्य मानता हूँ । रामदासने आज एक बजेतक तीन फुट चौड़े और उतने ही गहरे डेढ़ गड्ढे खोद डाले १. अनुच्छेद ४ में जिन उपहारोंका उल्लेख आया है, उनकी प्राप्ति-सूचना २७-८-१९१० के इंडियन ओपिनियन में दी गई थी; १९१० में श्रावण बदी १, अगस्त, २१ को पड़ी थी । २. गांधीजीके चचेरे भाई अमृतलाल तुलसीदास गांधीके पुत्र ।