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प्रीतिभोज


नहीं रोक सकेगा। परन्तु कमसे-कम यह २२ जूनका एक दिन तो ऐसा हो, जब हम साम्राज्यके आदर्शोपर अमल कर सकें - आगे फिर चाहे जो भी होता रहे। हमें निश्चय है कि नगर-परिषदका यह व्यवहार सम्राट्के प्रति वफादारीका एक ठोस प्रमाण होगा और जबानी वफादारीकी अपेक्षा सम्राट जॉर्ज इससे कहीं अधिक खुश होंगे।

पिछले युद्धके समय, मानो किसीने कोई जादू कर दिया हो, इस तरह लड़ाईके मैदानमें सारे भेदभाव अदृश्य हो गये थे। भारतीय डोलीवाहक[१] जिस प्यालेसे पानी पीते, उसी प्याले या डिब्बेसे टॉमी सिपाही भी पानी पीते थे। वे भारतीयोंके साथ-साथ एक ही तम्बूमें रहते और जो खाना उनके हिन्दुस्तानी भाई खाते वही आनन्दके साथ वे भी खाते । उनके बीच पूरा सख्य-भाव था। हमें मालूम है कि ऐसे अवसरों पर युद्धके मैदानमें डटे हजारों भारतीयोंके हृदय किस तरह प्रफुल्लित हो जाते थे। 'पंच' के सम्पादक इन घटनाओंसे इतने प्रसन्न हुए थे कि उन्होंने अपने पत्रमें लिखा: "आखिर हम साम्राज्य-मातके सब हैं पुत्र सुजान।" हम यह भी जानते हैं कि लड़ाई समाप्त होते ही हमारे बीच फिर वही ईर्ष्या-द्वेष फैल गया। परन्तु युद्धके सबक एकदम भूल नहीं गये थे। जूलू विद्रोहके समय उन्हें फिर दोहराया गया। भारतीय आहत-सहायक दलके थोड़ेसे सैनिक उपनिवेशके नागरिक सिपाहियोंके साथ समानताके स्तरपर मिलने लगे। कैप्टन स्पार्क्स और दूसरे अधिकारियोंने दलकी सेवाओंकी सराहना की और भारतीय पुनः एक बार अनुभव करने लगे कि “आखिर हम साम्राज्य-मातके सब है पुत्र सुजान।"[२] क्या पिछले दो अवसरोंपर हुए इन अनुभवोंको राजतिलकके दिन दोहराना एकदम असम्भव है ? हम दक्षिण आफ्रिकासे इसका जवाब देनेका अनुरोध करते है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १७-६-१९११

८९. प्रीतिभोज

हॉस्केन समितिके सदस्योंको प्रीतिभोज देनेवालोंको उनकी शानदार सफलता- पर हम बधाई देते हैं। हमें इसके सम्बन्धमें प्राप्त सभी समाचारोंसे ज्ञात होता है कि पिछले समारोहोंकी भाँति यह समारोह भी बड़ा सफल रहा। स्वागत समिति द्वारा निमन्त्रित यूरोपीय मित्र भी अच्छी संख्यामें आये थे। अपने यूरोपीय मित्रों तथा समर्थकोंके सम्मानमें आयोजित यह भोज तो समाजकी ओरसे दी गई एक बहुत ही छोटी वस्तु थी। शुरू-शुरूमें, जब कि हर व्यक्ति सत्याग्रहियोंका मजाक उड़ा रहा था, हमदर्द यूरोपीयोंके लिए हमारा साथ देना बहुत हिम्मत, साहस और त्यागका काम था । हम जानते हैं कि किस तरह व्यंगचित्रकारोंने श्री हॉस्केनको अपने चित्रोंका निशाना बना लिया था।[३] और अपने क्लबों तथा गिरजाघरोंमें हमारे इन मित्रोंको

  1. देखिए खण्ड ५ पृष्ठ ३७८-८३ ।
  2. देखिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, परिच्छेद ९ ।
  3. देखिए सामनेका व्यंग्य-चित्र ।