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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


पढ़नेकी उमंग कुछ हद तक पूरी हो सकेगी। फिर भी मै आपके विचार उसे बता दूंगा। रेवाशंकरभाईकी इच्छा उसे शॉर्टहैड आदि सिखानेकी है। यह बात मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं आई। यह तो मेरी समूची विचार-धाराके खिलाफ पड़ती है।

एम्स्टर्डमके विषयमें आपके विचारोंसे मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। आधुनिक सभ्यताके जालमें फंसे हुए सभी लोग मुझे तो अपाहिज ही मालूम होते हैं।

आजकल मैं अपनी पाठशालाके विद्यार्थियोंको रातके समय एक घंटा महाभारतकी कहानियाँ पढ़कर सुनाता हूँ। आधे लड़के तमिल हैं, इसलिए मुझे ये कहानियाँ अंग्रेजी पुस्तकसे पढ़नी पड़ती हैं। इसके लिए आजकल मै आर्नोल्डकी 'इंडियन आइडिल्स' का उपयोग कर रहा हूँ। कल रातको उसमें से 'एनचैटेड लेक' ('माया-सरोवर') नामकी कहानी पढ़ी। उसका आशय इतना सुन्दर लगा कि उसे बार-बार पढ़नेका मन होता है। वह पुस्तक आपने न देखी हो, तो लेकर यह कहानी पढ़ लीजिए। जिस समाज में ऐसे उदात्त विचार प्रस्तुत करनेवाले व्यक्ति हो गये है, वह समाज आजकलकी इस नपुंसक सभ्यतासे क्या सीखेगा? |

मैं मॉरिशसकी रिपोर्ट में अभी हाथ नहीं लगा पाया हूँ।

नटेसनने [कुछ अंश] छोड़ दिये है, फिर भी रचना' अभी जिस रूपमें प्रकाशित हुई है, उसी के अनुसार मैं उसका अनुवाद 'इंडियन ओपिनियन' में शुरू करना चाहता हूँ।

मैं अपने सिरपर बेशुमार बोझ उठाये हुए हैं, ऐसा तो नहीं है। फिर भी आपकी चेतावनी ठीक है। बहुत करनेकी इच्छा रखना भी एक प्रकारका मोह है और मोह एक बड़ा दोष है। यह बात मैं समझता हूँ, तो भी लिया हुआ काम छोड़ा नहीं जा सकता। और हमारा धर्म भी यही कहता है कि उसे नहीं छोड़ना चाहिए। इतना हमें अवश्य देखना चाहिए कि हाथमें लिया हुआ काम अनुचित नहीं है। ऐसी आशंका मत कीजिए कि अत्यधिक बोझ उठाकर मैं अपना स्वास्थ्य बिगाड़ रहा हूँ। मेरी खुराक बैलकी जितनी है। दो बार खाने में बराबर डेढ़ घंटे लग जाते हैं, जब कि मेरे आसपासके लोगोंको तीन बारमें भी इतना समय नहीं लगता। मेरी तबीयत खराब रहती है, सो बिलकुल नहीं है; फिर भी मैं इस बातका सदा प्रयत्न करता हूँ कि मोहवश कभी कुछ न किया जाय । लालच तो तनिक भी नहीं है और उद्यम तो करना ही चाहिए। क्या करना चाहिए, इस बातका विचार करते हुए जो कार्य उत्तम लगता है, उसे करता रहता हूँ।

मोहनदासका वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५०९३) से।

सौजन्य : सी० के० भट्ट

१. तात्पर्य अगस्त १२ और सितम्बर २, १९११के बीच इंडियन ओपिनियनके गुजराती विभागमें प्रकाशित एक लेख-मालासे है। यह माला मद्रासकी गणेश ऐंड कम्पनी द्वारा प्रकाशित मूल अंग्रेजी पुस्तिकाका अनुवाद थी। इसमें अन्य लोगोंके अलावा श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा श्री गोखलेकी जीवनियाँ दी गई थीं।