पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

प्रिय श्री पॉल, ११३. पत्र : एच० एल० पॉलको अगस्त ७, १९११ मैं आपकी संस्थाकी प्रगति की ओर उत्सुकता व दिलचस्पीसे देखता रहूँगा । कृपया ऐंजोको मेरी तरफसे बधाई दे दीजिए । आशा है, आप सब सानन्द होंगे । हृदयसे आपका, मो० क० गांधी गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९०१) की फोटो नकलसे । सौजन्य : डॉक्टर कुप्पन । ११४. पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको पू० भाई प्राणजीवन, श्रावण सुदी १३ [ अगस्त ७, १९११] आपका पत्र मिला है। आपने सोराबजीके विषयमें जो लिखा है, उससे मैंने ऐसी कोई धारणा नहीं बनाई कि आपकी राय उनके विलायत भेजे जानेके विरुद्ध है। हरिलालसे रंगून रहनेका आग्रह न कीजिएगा । उसे स्वतन्त्रतापूर्वक रहने देने में ही उसका भला है। वह हारकर स्वयं रंगून जाये अथवा यहाँ चला जाये, तो बात दूसरी है। इसके सिवा रंगून में उसकी गुजराती सुधरनेकी सम्भावना मुझे कम मालूम होती है । यदि वह अहमदाबाद में अकेला रह सके और परिश्रमपूर्वक अभ्यास करे, तो उसकी १. डनकी मजिस्ट्रेट अदालतमें भारतीय दुभाषिया और क्लर्के । २. भारतीय शिक्षण संस्था, डर्बन । ३. श्री पॉलकी पुत्री; गांधीजीको इन्होंने अपना धर्म-पिता बना लिया था और फीनिक्स आश्रम में शिक्षा लेकर भारतीय समाजकी सेवा करनेका निश्चय किया था; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २७७ और ३२० । ४. पत्रमें भारतीय तिथि तो दी गई है, लेकिन संवत् नहीं। फिर भी दो बातोंके उल्लेखसे ईसवी- सन्का पता चल जाता है। छठे अनुच्छेद में इंडियन नेशनल बिल्ड सँके गुजराती अनुवादकी चर्चा है । यह अनुवाद इंडियन ओपिनियनके १९११ के अंकोंमें क्रमिक रूपसे प्रकाशित हुआ था । और फिर इन्हीं दिनोंकी बात है कि गांधीजी महाभारतमें वर्णित माया सरोवरके आख्यान (जिसे आर्नोल्डने अपनी पुस्तक इंडियन आइडिल्स में 'द एनचेंटेड लेक' शीर्षकसे प्रस्तुत किया है) से बहुत अभिभूत हो उठे थे; देखिए "पत्र: छगनलाल गांधीको ", पृष्ठ १२७-२८ । इससे ज्ञात होता है कि यह पत्र सन् १९११ में ही लिखा गया था। उस वर्षे श्रावण सुदी १३ को अगस्तकी ७ तारीख पड़ी थी। Gandhi Heritage Portal