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१२५. पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको

भाद्रपद सुदी १ (अगस्त २५, १९११]

भाई श्री प्राणजीवन,

पोलकके सम्बन्धमें आपका पत्र मिला।

मैने फीनिक्ससे जो पत्र लिखा था, उसपर भूलसे पूरा पता नहीं लिखा था, इसलिए वह मझे वापस मिल गया है। वह पढ़नेके योग्य है और मैंने उसमें जो मांग की है उसे अब भी करता है। इसलिए उसे ज्योंका-त्यों भेजता हैं।

मुझे ऐसा नहीं लगता कि श्री पोलक बिल्कुल ऐंग्लो-इंडियन हो जायेंगे। उनके स्वभावके सम्बन्धमें आपने जो-कुछ लिखा है, वह ठीक है। उनका स्वभाव तेज है। किन्तु वे दुधारू गाय हैं। उनका हृदय बिलकुल शुद्ध है और वे कर्त्तव्य-परायण है। प्रशंसा तो सभीकी शत्रु है; फिर वह उनकी शत्रु क्यों न होगी? किन्तु मुझे यह सन्देह नहीं है कि वे प्रशंसासे भ्रष्ट हो जायेंगे। वे जितने शुद्ध-हृदय है, उतने ही खरे भी है। शुद्ध-हृदय और खरे--यं दोनों शब्द कदाचित एक ही अथक बांधक है। यह कैसे मान लें कि ऐसा व्यक्ति भटक जायेगा? यह मान भी लें कि ऐसा होगा, तो भी मैं तो निर्भय ही है। उन्होंने सेवा की है। वे सेवा करनेके बाद चले जायेंगे तो यह सम्बन्ध टूट जायगा। उसमें हमें तो कुछ खोना नहीं पड़ेगा, क्योंकि हमारा सिद्धान्त सीमित है। जबतक कोई मनुष्य सत्यवादी और सत्याचारी जान पड़ता है तबतक उससे हमारा सम्बन्ध रहता है। और यह हमारे लिए सुखद ही होता है। यदि वह पीछे बदल जाता है तो उसमें हानि उसीकी होती है, हमारी कोई हानि नहीं होती। हमारा समस्त संघर्षका अनुभव यही है। अली और अन्य लोगोंके उदाहरण लीजिए। कदाचित् आप यह कहेंगे कि मैंने अलीपर जो पैसा खर्च किया और उनको जो प्रेम दिया वह व्यर्थ गया। किन्तु यह कहना ठीक नहीं होगा। वह पैसा तो केवल उसी उद्देश्यके निमित्त इकट्ठा किया जा सकता था। और वे गये पर अपना काम उन्होंने सच्चे हदयसे किया था। अलीके आनेसे उस समय तो लाभ ही हुआ था।

आपने अपने पत्रमें पीछे यह भी लिखा है कि आपका पोलकसे मेल हो गया है। फिर भी ऊपर की गई टीका तो ठीक ही है और आपने जो विचार प्रकट किये है वे जानने योग्य थे।

१. जान पड़ता है कि डॉक्टर मेहता पोलकसे इंग्लैंडमें मिले थे। श्री पोलक मई, १९११में इंग्लैंडके लिए रवाना हुए थे। उस वर्ष भाद्रपद सुदी १ को अगस्तकी २५ तारीख पड़ी थी।

२. अलीसे सम्बन्धित घटनाके लिए देखिए खण्ड ७, पृष्ठ १२४-२५ और खण्ड ८, पृष्ठ ९६-९७