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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


तुमने जो कविता भेजी उसकी भूमिका ठीक लिखी थी। उसमें कुछ फेरफार करनेकी इच्छा हुई थी, किन्तु मैने किया नहीं। मुझे फिलहाल पाठशालाको धुन सवार है। इसलिए मैं दूसरे मामलोंमें मन नहीं लगा पाता और इसी कारण उन्हें छोड़ना पड़ता है। दूसरे मामलोंमें भी ऐसा ही हो रहा है। ऐसा करना उचित है या नहीं, यह कई बार अवश्य सोचता हूँ। किन्तु हर बार ऐसा ही लगा है कि मेरा पाठशालामें तन्मय हो जाना ठीक ही है। मैं अभी इतना तन्मय तो नहीं हुआ हूँ कि उससे मुझे सन्तोष हो जाये; किन्तु दूसरे मामले गौण हो गये है, यह मैं अनुभव करता हूँ। लड़के बड़ी तेजीसे बढ़ते दिखाई देते हैं। कृष्णसामी दस दिन गैर-हाजिर रहनेसे पिछड़ गया है। कई बार यह भी लगता है कि यह वेग कहीं बहत अधिक तो नहीं हो जायेगा।

मेरा यह शिक्षा कार्य प्रयोगके रूपमें है। अब इसका जो भी परिणाम निकले।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजोके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ५७१०) की फोटो-नकलसे।

१२८. पत्र: मगनलाल गांधीको

भाद्रपद बदी १ [९ सितम्बर, १९११'

चि० मगनलाल,

सुदी १३का तुम्हारा पत्र मिला। यदि घर बनाने में जो खर्च हुआ है उसके लिए तुम्हें और आनन्दलालको रुपया दिया जाये तो श्री कॉडिजको भी दिया जाना चाहिए। इस सम्बन्धमें फिर दूसरे इतने प्रश्न खड़े होते हैं कि उनका पार ही नहीं है। हमें जो करना है उसे इस दष्टिसे देखनेकी जरूरत महसूस करता हूँ। घरोंके सम्बन्धमें मुझे जो रकम तुम लोगोंसे पानी है उसे मैं छोड़ देना चाहता हूँ। इसमें अब किसीपर कर्ज ज्यादा है और किसीपर कम इसका खेद नहीं किया जाना चाहिए। और मैं सोचता हूँ तुम्हारे कर्जके बारेमें अलगसे विचार करना ही ठीक होगा। अब तो ट्रस्ट-डीडपर हस्ताक्षर हों और जब हम किसी अन्तिम निर्णयपर पहुंचे तभी विशेष विचार किया जाये। मेरा विचार डीडपर हस्ताक्षर होनेसे पहले वहाँ पहुँच जानेका है। परन्तु यह काम दो-तीन महीने में होता नहीं दीखता। सम्भवत: अगले वर्ष ही होगा। इस बीच इस सम्बन्धमें जो कुछ पूछना हो, पूछ लेना।

१. इस पत्रमें गांधीजी उन बातोंको विस्तारसे समझा रहे हैं जो उन्होंने अपने २३ अगस्त, १९११के पत्रमें जयकृष्ण व्यासके सम्बन्धमें संक्षेपमें कही थीं। इससे जान पड़ता है कि यह पत्र २३. अगस्तवाले पत्रके शीघ्र बाद ही लिखा गया होगा।

२. सितम्बर ६ ।

३. लगता है, छगनलालकी ही भाँति मगनलालने भी फीनिक्समें अपने हिस्सेकी भूमि सुधारनेमें लगाई गई रकम वापस मांगी थी। देखिए पृष्ठ १३७ और १४४ ।