प्रयत्न करते हैं और हम अपने आत्मिक हित-साधनका प्रयत्न करते है तो हमारा परस्पर Community of interest नहीं है।
इस्लामी पुस्तके गुजरातीमें कौन-कौन-सी है, यह मैं नहीं जानता। इतना ही जानता हूँ कि पैगम्बर मुहम्मद साहबका जीवन-चरित्र नारायण हेमचन्द्रने लिखा है। और उसकी प्रतियाँ पहले 'गुजराती' प्रेसवाले बेचते थे। मगनलालसे कहना कि फिलहाल पुस्तकों या अखबारोंकी सूची न छापना अच्छा होगा। वह इस पत्रको पढ़ ले, इतना काफी है।
हमारी पाठशालामें अनायास ही इन दिनों तीन लड़के बढ़े है। वे सभी सोमवारसे शनिवार तक अलोनी शाक-सब्जी खाते है और दाल न खानेका व्रत पालते है।
मोहनदासके आशीर्वाद
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू०५६४०) से।
सौजन्य: नारणदास गांधी।
भाद्रपद सुदी ६ [अगस्त २९, १९११]
तुम्हारा क्षय-सम्बन्धी लेख ठीक है। क्षयकी रोक-थामके लिए क्या उपाय करने चाहिए, इस विषयमें तुमने नहीं लिखा। उसमें सुधार और परिवर्तन करनेकी अभी फुरसत नहीं है। लेख जैसा है वैसा ही छपने में कोई हर्ज नहीं। मैं स्वास्थ्य-सम्बन्धी अध्याय लिखनेकी योजना बनाता हूँ; किन्तु कोई-न-कोई विघ्न आ जाता है। लिखनेका सब काम केवल रातमें ही हो सकता है; इसलिए बहुत ही कम वक्त बचता है। फिर भी मैं अपनी सामग्री तैयार करता रहता है। यदि लिखनेकी फरसत मिली तो क्षय आदि रोगोंके सम्बन्धमें भी लिखंगा। यह भी विचारणीय है कि सब अध्याय लिख जाऊँ तब छापे जाये या उन्हें जैसे-जैसे लिखता जाऊँ वैसे-वैसे छापा जाये।
तुम्हें हर महीने रुपया देनेके सम्बन्धमें लिख चुका है।
१.देखिए आत्मकथा, भाग १, अध्याय २२ ।
२. अनुच्छेद १ में किये गये श्री छगनलालके क्षय-सम्बन्धी लेखके उल्लेखसे ऐसा लगता है कि यह वही लेख होगा जो २-९-१९११ के इंडियन ओपिनियनके गुजराती विभागमें "क्षयनो रोग" शीर्षकसे छापा गया था। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद ३ में उल्लिखित कविता और उसके परिचय भी इंडियन ओपिनियनके २६-८-१९११ के अंकमें प्रकाशित हुए थे। इस प्रकार जान पड़ता है कि यह पत्र १९११ में ही लिखा गया था और भाद्रपद सुदी ६, अगस्तकी २९ तारीखको पड़ी थी।
३. गांधीजी द्वारा लिखे गये ये लेख १९१३ से पहले तक प्रकाशनके लिए तैयार नहीं हो सके थे, यह स्पष्ट है।
४. देखिए, “पत्र : छगनलाल और मगनलाल गांधीको", पृष्ठ १४४ ।