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अन्यायपूर्ण कर

यदि कांग्रेसवाले या दूसरे लोग कुछ कहें तो इसमें अप्रतिष्ठाकी क्या बात है ? हमारा मन जिसे प्रतिष्ठा कहे वह प्रतिष्ठा है और जिसे अप्रतिष्ठा कहे वही अप्रतिष्ठा है । तुम अपना काम निश्चिन्त और निडर होकर करते रहना ।

यदि हमने अपना सर्वस्व कृष्णार्पण कर दिया हो तो जिसका यह सब कुछ है वही उसको सँभालेगा । यदि न सँभाले तो इसमें तुम्हारी या मेरी क्या हानि है ? देखना तो यह चाहिए कि हमने सब कृष्णार्पण कर दिया है या उसका कुछ अंश अपने लिए बचा लिया है ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ६०७७) की फोटो - नकलसे ।

१६५. अन्यायपूर्ण कर

हम नेटालके भूतपूर्व गिरमिटिया स्त्री-पुरुषों और बच्चोंसे वसूल किये जानेवाले तीन पौंडी करके बारेमें लॉर्ड ऍम्टहिलकी समितिके नाम उपनिवेश मन्त्रीका उपयोगी जानकारीसे पूर्ण एक पत्र[१]तथा गवर्नर जनरलके नाम संघके प्रधान मन्त्रीका खरीता अन्यत्र प्रकाशित कर रहे हैं। माना कि यह कर भारत सरकार और सम्राट्की सरकारकी जानकारी और उनकी सहमति से ही थोपा गया था और यह सहमति ठीक-ठीक तथ्य पेश करके ही प्राप्त की गई थी, किन्तु इससे यह कानून कुछ कम अन्यायपूर्ण तो नहीं हो जाता । संघ-सरकारका यह रुख देखने में बड़ा सहानुभूतिपूर्ण

  1. उपनिवेश-मन्त्री हरकोर्टने नवम्बर १४, १९११ को यह पत्र दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति द्वारा जून १७, १९११ ( परिशिष्ट ८) को प्रस्तुत किये गये अभ्यावेदनके छठे अनुच्छेदके उत्तर में भेजा था। अभ्यावेदनके छठे अनुच्छेदमें भारतीय स्त्रियों और बच्चोंको तीन पौंडी करसे विमुक्त करनेकी माँग करते हुए कहा गया था कि १९१० के संशोधन अधिनियम (१९१० के नेटाल अधिनियम १९ ) के फलस्वरूप " स्थिति में बहुत ही थोड़ा सुधार" हुआ है । उसमें अलग-अलग मजिस्टेटोंके विभिन्न निर्णयोंकी असमान- ताओं की ओर भी ध्यान आकर्षिक किया गया था । हरकोर्टने अपने पत्रके साथ दक्षिण आफ्रिका के गवर्नर जनरलकी एक विज्ञप्तिकी प्रति भी संलग्न की थी, जिसमें इस विषयके सम्बन्ध में संघके मन्त्रियोंके विचारोंका एक मसविदा दिनांक अगस्त २२, १९११ को दिया गया था । मसविदेपर सावरके हस्ताक्षर थे और उसमें कहा गया था कि तीन पौंडी कर "स्वतन्त्र भारतीयोंकी संख्याको यथासम्भव सीमित करनेकी दृष्टिसे, नीतिके आधारपर" लगाया गया है और मन्त्रिगण उसे रद करना ठीक नहीं समझते । मसविदेमें यह भी कहा गया था कि कुछ मामलोंमें कानूनकी कार्यान्वितपर बड़ी “सावधानी के साथ नजर रखी गई" है और सभी शिकायतोंकी जाँच-पड़ताल की गई है और मन्त्रियोंको पूरा-पूरा यकीन है कि “इस कानूनके प्रशासन में कोई भी अनुचित सख्ती नहीं हुई है । हरकोर्टने इसी सिलसिले में कहा था कि मसविदेमें तथ्योंको "ठीक-ठीक ढंगले पेश किया गया" है और कानून भारत सरकार और सम्राट्की सरकारकी पूरी जानकारीमें और उनकी सहमतिले पारित किया गया है, और मैं मन्त्रियोंके निर्णयको स्वीकार ही कर सकता हूँ। इंडियन ओपिनियन, १६-१२-१९११ । "