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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लग सकता है कि यदि लोगोंको कष्ट होने के कुछ निश्चित उदाहरण सामने रखे जायें तो वह उनपर विचार करनेके लिए तैयार है । लेकिन हमारा खयाल है कि जिन-जिनपर यह कर लगाया गया है निश्चित रूपसे उन सभीको परेशानी हो रही है । परन्तु इसके अतिरिक्त भी, जैसा कि श्री सावरने[१]कहा है, यदि सरकार कानूनके अमलपर सावधानीके साथ नजर रखती आई है और उसने सभी शिकायतोंकी जाँच की है, तो यह दिखानेके लिए कि किन मामलों और किन हालतोंमें करकी माफी दी गई है, आँकड़े क्यों पेश नहीं किये गये ? लोगोंके, विशेषकर स्त्रियोंके, कष्टोंके अनेक उदाहरण 'इंडियन ओपिनियन' में छापे जाते रहे हैं । सरकार स्त्रियोंको तो सर्वथा कर मुक्त करने के लिए वचनबद्ध थी ही । नेटालकी भूतपूर्व संसदमें संशोधन विधेयक पारित होते समय कई जिम्मेदार सदस्योंने जो भाषण दिये थे,[२] उनमें से उद्धरण पेश करके हमने इस बातको सिद्ध किया था । हमें विवश होकर कहना पड़ रहा है कि मन्त्री महोदयके खरीतेका मंशा साम्राज्य सरकारसे यह छुपाना है कि कर दाताओंको कितना गम्भीर कष्ट है। इन भूतपूर्व गिरमिटिया लोगोंने वर्षों जिनकी गुलामी की है उनके हाथों वे ज्यादा अच्छे सुलूकके अधिकारी थे । इन लोगोंके साथ जो गन्दा बरताव किया गया है. हमें आशा है कि उसकी दक्षिण आफ्रिकाके समाचार-पत्रों द्वारा लगभग एक स्वरसे की गई भर्त्सनाकी[३] ओर साम्राज्य सरकारका ध्यान अवश्य जायेगा । हमारा खयाल है कि श्री हरकोर्टके हाथमें कमसे कम इतना तो था ही कि संघ-सरकारसे, नेटालके लिए गिरमिटिया भारतीय मजदूरोंकी भर्ती बन्द हो जानेके फलस्वरूप उत्पन्न, नई परिस्थितिपर विचार करनेके लिए कहते । स्वतन्त्र भारतीय लोगोंकी संख्या यथासम्भव सीमित करनेका प्रश्न अब पैदा ही नहीं होता; जैसा कि प्रिटोरिया के निर्वाचकोंके सामने ७ तारीखको दिये गये जनरल स्मट्सके अपने भाषणसे प्रकट है :

यदि अब कभी यहाँ एशियाइयोंको गिरमिटिया मजदूरोंके रूपमें लाया गया तो क्रान्ति हो जायगी । वह दरवाजा तो सदाके लिए बन्द हो गया ।

हमें यह देखकर बड़ा सन्तोष हुआ कि लॉर्ड ऍम्टहिलकी अनुपस्थितिमें लॉर्ड लैमिग्टन आगामी विधेयकके बारेमें लॉर्ड सभाके समक्ष प्रश्न रखते आ रहे हैं ।[४]

  1. जे० डब्ल्यू० सावर; केप विधानसभा और बाद में संघ मन्त्रिमण्डल के सदस्य १९०९ के ट्रान्सवाल भारतीय शिष्टमण्डल के साथ 'केनिलवर्थं कैसिल' जहाजपर यात्रा; देखिए खण्ड ९, पृष्ठ २७२; उसी यात्राके दौरान गांधीजी से मुलाकात; गांधीजीको उनका रुख बड़ा 'सहानुभूतिपूर्ण" लगा; उसी समय उन्होंने गांधीजीको यथासम्भव सहायता करनेका वचन दिया था ।
  2. देखिए " तीन पौंडी कर", पृष्ठ १७५ ।
  3. यूरोपीय मालिकों द्वारा प्रकाशित नेटाल मर्क्युरी, नेटाल ऐडवर्टाइज़र, और रैंड डेली मेल- जैसे कई पत्रोंने अपनी लेख-मालाओं और सम्पादकीय टिप्पणियों में तीन पौंडी करकी निन्दा की थी ।
  4. लॉर्ड लैमिंग्टनने दिसम्बर ६ को लार्ड सभामें माँग की थी कि ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयों के सम्बन्ध में उपनिवेश-कार्यालय और संघ-सरकारके बीच हुआ पत्र-व्यवहार पेश किया जाये। उन्होंने नगरपालिका अध्यादेशके मसविदे, स्वर्ग-अधिनियम और कस्बा - कानूनके प्रवर्तेनके सम्बन्धमें भी सूचना माँगी। इंडियन ओपिनियन, ९-१२-१९११ ।