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पत्र : आर० ग्रेगरोवस्कीको

थी । मैं आपकी सुविधाके लिए वक्तव्यके साथ-साथ एक ऐसा अंश भी भेज रहा हूं जिसमें ऑरेंज फ्री स्टेटके कानूनोंके आवश्यक खण्ड आ जाते हैं । इनके अलावा पिछले वर्ष दी गई आपकी सलाह, सम्बन्धित विधेयक तथा नेटाल और केपके प्रवासी कानून भी भेज रहा हूँ ।

हृदयसे आपका,

श्री आर० ग्रगरोवस्की
प्रिटोरिया

[ सहपत्र ]

कानूनी सलाहकारके परामर्शके लिए भेजा गया विवरण

कानूनी सलाहकारसे अनुरोध है कि संघ-संसदके सामने प्रस्तुत प्रवासी विधेयकसे उत्पन्न निम्नलिखित मुद्दोंके बारेमें वे अपनी राय दें :

१.खण्ड ५ के उपखण्ड (च) और (छ)[१]वैध प्रवासियों तथा अधिवासी निवासियोंकी ऐसी पत्नियों और नाबालिग बच्चोंको तथा स्वयं ऐसे अधिवासी निवासियोंको भी निषेधक धारासे बरी कर देते हैं जो प्रवासी अधिकारीको पत्नियों, नाबालिग बच्चों या अधिवासी निवासियोंकी हैसियतसे अपने अधिकारोंका विश्वास दिला दें ।
क्या यह धारा न्यायालयोंकी सामान्य सत्ता समाप्त कर देती है ? यदि नहीं, तो क्या वह किसी बात में भी न्यायालयों की सत्ता समाप्त करती है, और किस हद तक ? क्या प्रवासी अधिकारियोंके निर्णयोंके विरुद्ध उसी तरह अपील की जा सकेगी, जिस तरह मजिस्ट्रेटकी अदालतोंके फैसलोंके विरुद्ध की जाती है ? क्या छूट-सम्बन्धी धारापर खण्ड ७ का[२] भी कोई असर पड़ता है ?
२.आज नेटाल या केपमें बहुत-से ब्रिटिश भारतीय इस आधारपर रहते हैं कि उन्होंने सम्बन्धित प्रान्तोंके प्रवासी-कानूनोंके अन्तर्गत शैक्षणिक परीक्षा पास की है।
३.वे इस विधेयकके अन्तर्गत किस तरह संरक्षित होते हैं ? क्या वे शैक्षणिक परीक्षा में सफल होकर प्रवेश करनेके आधारपर सम्बन्धित प्रान्तोंके अधिवासी बननेके साथ-साथ वहाँ रहने के अधिकारी भी हो जाते हैं, या वे केवल इसलिए संरक्षित हैं कि विधेयकमें इनके अधिकार स्पष्ट रूप से छीने नहीं गये हैं ।
३.उन लोगोंकी स्थिति क्या है, जिन्होंने नेटाल या केपमें शैक्षणिक परीक्षा पास करके प्रवेश किया था लेकिन जो अभी कुछ समय के लिए अपने-अपने निवासके प्रान्तोंमें नहीं हैं ?
 
  1. देखिए पृष्ठ २१० की पाद-टिप्पणियाँ ४ और ५ तथा " पत्र : ई० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ २१०-१२ और परिशिष्ट १३ भी ।
  2. देखिए पाद-टिप्पणी १, पृष्ठ २११ तथा “पत्र : ई० एफ० सी० लेनको ", पृष्ठ २१०-१२ ।