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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

कानूनोंमें विहित शैक्षणिक परीक्षा पास कर लेनेपर वे ट्रान्सवालसे उक्त प्रान्तोंमें जा सकते हैं तो सत्याग्रहियोंको कोई शिकायत नहीं होगी।

जहाँतक फ्री स्टेटकी बात है, यदि आपके कानून अधिकारियोंका यह ख्याल ठीक है कि ऑरेंज फ्री स्टेट संविधानके अन्तर्गत ज्ञापन देना आवश्यक नहीं होगा, तो यह गम्भीर कठिनाई हल हो जायेगी। लेकिन यह बात बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए हम इस सम्बन्धमें भी कानूनी सलाह ले रहे हैं।

अन्तमें निवेदन है कि यदि नेटालके अधिवासी भारतीय अधिकारके रूपमें अधिवास प्रमाणपत्र पानेका दावा नहीं कर सकते तो सत्याग्रही इस विधेयक के खण्ड २५ (२)[१] का नियमानुसार पालन नहीं कर सकते। फिर भी मैं इस बातकी ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि यदि एक हजार प्रमाणपत्र जब्त कर लिये गये, तो इससे मेरा यह कथन सर्वथा सत्य सिद्ध होता है कि जो प्रमाणपत्र जारी किये जा चुके हैं उन्हें चोरी-चोरी हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता। मेरा खयाल है, सन् १८९६ से लेकर आजतक एक हजार प्रमाणपत्र जब्त किये गये है।[२]इसका अर्थ यह हुआ कि हर साल साठ भारतीय दूसरोंके अधिवास प्रमाणपत्रोंका उपयोग करके अपनी- प्रतिष्ठा गिराने के लिए तैयार रहते थे; और अपराधका पता चलनेपर उन्हें समुचित दण्ड दिया जाता था ।

हृदयसे आपका

श्री अर्नेस्ट एफ० सी० लेन
केप टाउन

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५६२५) की फोटो नकलसे ।

१९४. पत्र : आर० ग्रेगरोवस्कीको

जोहानिसबर्ग
फरवरी १५, १९१२

प्रिय श्री ग्रेगरोवस्की,

नये विधेयकपर आपकी राय जाननेके लिए मैं उससे सम्बन्धित एक विवरण नत्थी कर रहा हूँ । आपने उस विधेयकके सम्बन्धमें भी मुझे अपनी राय देनेकी कृपा की थी, जिसे पास कराने के लिए जनरल स्मट्सने पिछले साल बड़ा प्रयास किया था;[३]और मैं आपको बता ही चुका हूँ कि वह राय बहुत मूल्यवान साबित हुई

  1. इस खण्डमें, अन्य बातोंके अलावा, अस्थायी रूपसे संघसे बाहर जानेके इच्छुक एशियाश्योंके लिए यह आवश्यक था कि वे अधिवास प्रमाणपत्र लें और लौटनेके लिए समय-समयपर उनसे जिस प्रकार शिनाख्त देनेकी अपेक्षा की जाये उस प्रकार शिनाख्त दें । देखिए परिशिष्ट १३ ।
  2. देखिए परिशिष्ट १५ ।
  3. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ४४४-४६।