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पत्र : आर० ग्रेगरोवस्कीको

वह तुम्हें पत्र पढ़ने के लिए भेजेगी । न भेजे तो मँगा लेना । इसलिए वे ही बातें यहाँ फिर नहीं लिखता । मुझे तुम दोनोंके साथ-साथ रहने में कोई आपत्ति नहीं है। तुम्हें जैसा ठीक लगे वैसा करना और रहना । तुम सेठ मियाँखाँके घर रह रहे हो, यह ठीक ही है। उनसे थोड़ा-बहुत भाड़ा लेनेका आग्रह फिर करना । चांदाभाईसे मिलूंगा, तब बात करूँगा ।

चंचीको बाके जैसा रोग किस कारण से...[१]

गांधीजी स्वाक्षरोंमें लिखित मूल गुजराती पत्रकी फोटो नकल (एस० एन० ९५४१) से ।


१९८. पत्र : आर० ग्रेगरोवस्कीको

फरवरी २०, १९१२

प्रिय श्री ग्रेगरोवस्की,

आपके पत्रके लिए धन्यवाद ! मैं बड़ी उत्सुकतासे आपकी रायका इन्तजार करूँगा । मैं इस बात से बिलकुल सहमत हूँ कि यह मसविदा एक भारी धोखेबाजी है और इसे ठीक करने का एक तरीका है आपका बहुमूल्य परामर्श लेना । आपकी पिछले वर्षकी सलाहसे[२] मेरा काम नहीं चलेगा; क्योंकि प्रस्तुत कानूनमें कुछ नई बातें तो आ ही गई हैं; दूसरे, आपके जो विचार मेरे विचारोंसे मिलते हैं, मैं निश्चय ही उनका उपयोग यहाँ भी और लन्दनमें भी अपने उन तर्कोंके समर्थन में करूँगा, जिन्हें मैं लोगोंके सामने रख चुका हूँ । इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप मेरे द्वारा उठाये गये सभी मुद्दोंपर अपनी राय देंगे; पिछले सालकी सलाहका उल्लेख केवल उसी सीमा तक करें जहाँतक पिछले वर्षके मसविदेसे[३]प्रस्तुत विधेयककी तुलना करनेके लिए आवश्यक हो

हृदयसे आपका,

श्री आर० ग्रेगरोवस्की
प्रिटोरिया

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५६३०) की फोटो - नकलसे ।

 
  1. आगेके पृष्ठ उपलब्ध नहीं हैं ।
  2. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ४४४-४६ ।
  3. देखिए खण्ड १०, परिशिष्ट ८ ।