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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खर्चेकी वापसी या अदायगीके सिलसिलेमें प्राप्त रकमें हैं। इसमें फार्मकी हमारी पाठशाला में पढ़नेवाले विद्यार्थियोंके माता-पिताओं द्वारा चुकाया गया उनका भोजन खर्च भी शामिल है।

बहुत-से स्वयंसेवकोंने स्वेच्छासे और बिना कुछ लिये हमारी मदद की; श्री कैलेनबैकने ठीक समयपर हमें सहायता दी और इस सबसे बढ़कर सत्याग्रहियोंके परिवारोंने फार्मपर जाकर रहनेका सुझाव बड़ी तत्परतासे स्वीकार कर लिया; यदि यह सब न हुआ होता तो खर्च बहुत ज्यादा होता ।

इस हिसाब के प्रकरणको समाप्त करनेके पहले मैं इतना और कह देना चाहूंगा कि इस हिसाब - पत्रकमें जो खर्च दिखाया गया है उसमें स्थानिक समितियोंने जगह-जगह जो सैकड़ों पौंड इकट्ठे किये और खर्च किये उनका कोई उल्लेख नहीं किया गया है । इसी प्रकार लोगोंने निजी तौरपर जो पैसा इकट्ठा किया उसका भी कोई जिक्र नहीं है; इसके बारेमें तो शायद हमारे देशके लोगोंको कभी कुछ मालूम ही नहीं होगा। यह संघर्ष चार साल तक चलता रहा और इस अवधि में समाजको बहुत ज्यादा आर्थिक त्याग करना पड़ा। इस सम्बन्ध में मुझे एक सुखद अनुभव यह हुआ कि जो लोग अपने और अपने देशके सम्मानकी रक्षाके लिए लगातार जेल जा रहे थे उन्होंने खुशीसे इस लड़ाईकी सहायतामें सबसे ज्यादा पैसा भी दिया।

आप देखेंगे जमाके मुकाबले में खर्च अधिक हो गया है। और उसे पूरा करनेके लिए जहाँसे भी मदद मिलनेकी सम्भावना दीखती है, उन सभी साधनोंका सहारा लेना पड़ रहा है। घाटेकी यह स्थिति कोई तीन माह पूर्व शुरू हुई थी। सौभाग्यसे इन दिनों श्री पेटिटने बड़े मौकेपर दो बार पैसा भेज दिया। अब अगर भारतसे सहायता न आये और हम यहाँ भी आवश्यक चन्दा इकट्ठा न कर सकें तो हमें जहाँ-तहाँ काटकसर की बात सोचनी होगी । सत्याग्रहियोंके अधिकांश परिवार - बच्चे और स्त्रियाँ - फार्मसे चले गये हैं और उनके पतियों या परिवारके कमानेवाले सदस्योंने अपनी जीविकाके साधन ढूंढ लिये हैं; लेकिन वे सब यह तो मानते ही हैं कि अगर लड़ाई फिर शुरू हुई तो वे पुनः फार्मका आश्रय लेंगे ।

यद्यपि संघ-संसदकी बैठकें अभी चल रही हैं और मेरे तथा जनरल स्मट्सके पिछले सालके पत्र व्यवहारमें[१]तय शुदा शर्तोंको कार्यान्वित करनेके उद्देश्यसे जो विधेयक तैयार किया गया था उसका पहला वाचन हो चुका है, फिर भी अभी यह कहना कठिन है कि इस साल हमारी लड़ाई पूरी तरह समाप्त हो जायेगी या नहीं । सत्याग्रहकी दृष्टिसे विधेयकमें ऐसे दोष हैं जिनके खिलाफ आपत्तियाँ उठाई

 
  1. पद पत्र-व्यवहार नवम्बर, १९१० में शुरू हुआ और २० मई, १९११ तक चलता रहा । मार्च, १९११ के दरमियान गांधीजीने गृह मन्त्रीके सचिवके नाम जो पत्र लिखे उनके लिए देखिए खण्ड १०; सरकारकी ओरसे गांधीजीके नाम आये हुए पत्रोंके लिए सम्बन्धित परिशिष्ट देखिए । १ अप्रैल और २० मई, १९११ के बीच गृह मन्त्री अथवा उनके निजी सचिवके नाम गांधीजी द्वारा लिखे पत्रोंकी तारीखें इस प्रकार हैं: अप्रैल ७, ८, १९, २०, २२ और २९ तथा मई ४, १८, १९ और २० । सरकार की ओरसे आये पत्रोंके लिए देखिए परिशिष्ट १, २, ४, ५ और ६ ।