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२१०. पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

टॉल्स्टॉय फार्म
लॉली

अप्रैल ४, १९१२

प्रिय श्री लेन,

विधेयकके सम्बन्धमें आपके पिछले तारके[१] लिए धन्यवाद । अभीतक विधेयक पेश नहीं हुआ है । क्या आप बता सकेंगे कि इस सत्र में वह पेश भी किया जायेगा, या उसे छोड़ ही दिया जायेगा ? यदि इसे छोड़ देनेकी बात हो, तब तो कोई-न-कोई नई व्यवस्था करनी ही पड़ेगी। आशा है, आप इससे सहमत होंगे। यदि सम्भव हो तो कृपया इसका जवाब तार द्वारा दें।[२]

हृदयसे आपका,
[ मो० क० गांधी ]

श्री अर्नेस्ट एफ० सी० लेन
केप टाउन

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५६४३) से ।

११. बस्तियाँ और रोग

समाचार मिला है कि केप प्रान्तके स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी डॉ० थॉर्नटनने क्षय-आयोगके सामने गवाही देते हुए अभी उस दिन कहा : नगरपालिकाकी बस्तियोंकी हालत बहुत खराब है । कुछेक [ बस्तियों ] को छोड़कर, झोंपड़ियोंका किसी प्रकारका निरीक्षण कदाचित् ही किया जाता है। और बहुत कम नगरपालिकाएँ ऐसी हैं जो बस्तियोंसे होनेवाली आयके बदले में उन्हें कोई सुविधाएँ प्रस्तुत करती हैं। आयोग के सामने दी गई अन्य गवाहियोंसे सिद्ध होता है कि अधिक "सुसंस्कृत" राष्ट्रोंकी दूसरे लोगोंको सभ्य" बनानेकी नीतिका परिणाम इस देशके मूल निवासियोंकी मृत्यु और उनके विनाशके रूपमें प्रकट हुआ है। जबतक यहाँकी मूल जातियोंने यूरोपीय रहन-सहन और रीति-रिवाजको नहीं अपनाया था, तबतक यहाँ क्षयका नाम भी लगभग अपरिचित था। ईसाई धर्म प्रचारकोंके एक केन्द्रका विशेष रूपसे जिक्र करके बतलाया गया है कि वह इस रोगसे अपेक्षाकृत सुरक्षित है और इसका कारण यह है कि वहाँका

  1. देखिए "तार : गृहमन्त्रीको", पृष्ठ २४४ ।
  2. मन्त्री महोदयने अप्रैल ९ को तार द्वारा जवाब दिया कि “प्रवासी विधेयक उठा लेनेका कोई इरादा नहीं।" (एस० एन० ५६४४) । फिर इसकी पुष्टि करते हुए उन्होंने अप्रैल ९को पत्र भी लिखा। (एस० एन० ५६४५) ।