मेरी समझ में इसका आशय यह नहीं है कि जिन लोगोंको प्रवासी-परीक्षाके आधारपर संघ में प्रवेश करनेकी अनुमति दी जा चुकी है, उन्हें फिरसे ऐसी परीक्षा देनेपर मजबूर किया जायेगा, और उन्हें असफल बताकर उनका प्रवेश फ्री स्टेटमें या तो रोक दिया जायेगा या रोका जा सकेगा। यदि आप मुझे पुन: इस सम्बन्धमें आश्वस्त करनेकी कृपा करें तो मैं आभारी होऊँगा ।
हृदयसे आपका,
[ मो० क० गांधी ]
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टाइप की हुई दफ्तरी प्रति (एस० एन० ५६४६ ) की फोटो- नकलसे ।
२१४. पत्र : मणिलाल गांधीको
[ लॉली ]
चैत्र वदी ११ [ अप्रैल १३, १९१२][१]
तुम्हारा पत्र मिला । श्रीमती पाइवेल[२]आदिने तुम्हारे लिए बड़ी तकलीफ उठाई; इसलिए तुम्हारे मनमें कृतज्ञतापूर्ण भावनाका आना ठीक ही है ।
तुम्हारे अव्यवस्थित ढंगसे मुझे बहुत दुःख होता है । मैं चाहता हूँ कि इसके लिए तुम्हें कितना भी प्रयत्न क्यों न करना पड़े, तुम व्यवस्थित बनो ।
तुम्हारा चित्र देखा । तुम्हारा बिलकुल अंग्रेजी लिबास मुझे पसन्द नहीं आ सकता। कालरपर भी कलफ ? बेशक तुम्हें साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिए; परन्तु तुम पक्के अंग्रेजकी तरह कपड़े पहनो, यह हमें शोभा नहीं देता । तुम हमेशा देशी टोपी लगाना तय करो तो भी ठीक है। ऐसे मामलोंमें मेरी आलोचनासे तुम्हें उदास नहीं होना चाहिए। यदि तुम्हें मेरी कोई बात ठीक न जान पड़े तो उसपर ध्यान मत देना । मैं यह नहीं चाहता कि तुम मुझे प्रसन्न रखने के लिए अपने रहन-सहन और व्यवहारमें फेरफार करो। तुम्हें मेरी दलील ठीक लगे और उसके अनुसार चलनेकी तुममें ताकत हो तभी फेरफार करना ।
अनीसे ज्यादा मिलते रहनेकी जरूरत है ।
छबीलदासकी[३] पत्नीसे भी मिलते रहना और उनकी सार-सँभाल करना ।