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पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

चलती रहे तो उसमें हम क्या कर सकते हैं ? इसका विचार करना भी अभिमान करना है । तुम्हारी कार्लाइलकी पुस्तक मेरे पास है । उसमें इस सम्बन्धमें कुछ महत्व- पूर्ण वचन मैंने अभी पढ़े हैं। इन्हें किसी समय तुम्हारे लिए लिखकर भेजूंगा ।

श्री वेस्ट और अन्य व्यक्ति यहाँ आ रहे हैं। इससे तुम्हें वहाँ कुछ और घबरा- हट होगी । फिर भी, तुम्हें घबराना नहीं चाहिए। श्री वेस्टका आना अच्छा ही है । उनका मिलना जरूरी था ।

अपने अभ्यास में विघ्न न पड़ने देना ।

सोमवारको बच्चोंके खेल रखे हैं । अभिभावकोंसे इनाम प्राप्त कर लिये गये हैं। और भी पचास अन्य व्यक्ति आयेंगे। मेरा मन करता है कि ऐसे अवसरपर तुम यहाँ होते ।

जमनादासको हिसाब-किताब रखना सिखाया है। यह काम आसान है । मैं उससे बहुत-कुछ सहायता लेता हूँ ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ९४) से ।
सौजन्य : सुशीलाबहन गांधी ।

२१३. पत्र : ई० एफ० सी० लेनको[१]

अप्रैल ११, १९१२

प्रिय श्री लेन,

मैंने अभी एक समाचारपत्रकी कतरन देखी है । उसमें व्यापार-संघके मन्त्रीके नाम लिखा गृह मन्त्रालयके कार्यवाहक सचिवका एक पत्र है । उसका एक अंश इस प्रकार है :

इस विधेयक के मसविदेका उद्देश्य यह नहीं है कि इमला इम्तहानका उपयोग एशियाइयोंको ऑरेंज फ्री स्टेटमें प्रवेश देनेके साधनके रूपमें किया जाये। उसका उद्देश्य तो इस उपनिवेशमें उनका प्रवेश रोकना है। इस विधिसे यह राज्य आज फ्री स्टेट विधि-पुस्तकके परिच्छेद ३३की धाराओंके अन्तर्गत एशियाइयोंका प्रवेश रोकने की दृष्टिसे जितना सुरक्षित है, प्रस्तुत विधेयककी धाराओंके अन्तर्गत उससे कहीं अधिक सुरक्षित रहेगा।[२]
 
  1. इसके उत्तर में श्री लेनने १७ अप्रैलको लिखा था : "... आप व्यापार संघके मन्त्रीको लिखे पत्रकी जो व्याख्या करते हैं वह बिलकुल सही है ।" (एस० एन० ५६४७)
  2. यह पत्र नेटाल मर्क्युरी में प्रकाशित हुआ था और वहाँसे ६-४-१९१२ के इंडियन ओपिनियन में उद्धृत किया गया था । पत्र में कार्यवाहक सचिवने अन्य बातोंके साथ-साथ यह भी कहा था कि “एशियाई लोग मौजूदा कानूनके अन्तर्गत फ्री स्टेटमें प्रवेश करके वहाँ स्थायी रूपसे बसनेकी अनुमति प्राप्त करनेके लिए अर्जी देनेसे पूर्व, यहाँ काफी दिनों तक रह सकते हैं, जबकि प्रस्तावित कानूनके अन्तर्गत उन्हें इस प्रान्तकी सीमापर ही प्रवेश करनेसे रोका जा सकता है ।"