कहते हैं कि डॉ० म्यूरिसनने क्षय-आयोगके सामने बयान दिया है कि भारतीयोंको झूठ बोलनेकी आदत है और "उनकी आदतोंके कारण उनके निजी जीवनका अधिक हाल जानना कठिन है । उनकी सम्मतिमें "भारतीयों और वतनियों, दोनोंको, बस्तियों में रख देना चाहिए।" हम प्रतीक्षा करते रहे कि डॉ० म्यूरिसन सार्वजनिक रूपसे इस आक्षेपका प्रतिवाद करेंगे और हमने उनके आक्षेपके सम्बन्धमें और भी निश्चित जानकारी प्राप्त करनेके विचारसे उनसे लिखकर पूछा कि क्या आपकी गवाहीका प्रकाशित विवरण ठीक है । परन्तु न तो हमें उनका प्रतिवाद कहीं देखने में आया और न उत्तर ही मिला। इसलिए हम यह माने लेते हैं कि बयान ठीक ही प्रकाशित हुआ है। डॉ० म्यूरिसन ईमानदार चिकित्साधिकारी माने गये हैं । हमने उन्हें इस बातपर प्रायः बधाई दी है कि उनके सम्पर्कमें जो लोग आये उनकी हैसियतको सोचे बिना उन्होंने सभीके साथ समान व्यवहार किया । इसलिए हमें उनके द्वारा सारी जातिपर झूठ बोलनेके अविवेकपूर्ण आरोपका बड़े खेदके साथ एतराज करना पड़ रहा है। और फिर इस जातिके विरुद्ध दक्षिण आफ्रिका में पहलेसे ही भयंकर रूपसे झूठी बातें फैलाई जा रही हैं। पहली बात तो यह है कि चिकित्साधि- कारीकी हैसियत से डॉ० म्यूरिसनका वास्ता ही स्वस्थ लोगोंकी अपेक्षा अस्वस्थ लोगोंसे अधिक पड़ता है और अस्वस्थ लोगोंके दोषोंको उनके सारे समाजपर थोपना और कुछ नहीं तो अत्यन्त असंगत अवश्य है । परन्तु जिन भारतीयोंपर क्षयसे पीड़ित होनेका सन्देह हो उनपर क्या झूठे होनेका आक्षेप करना उचित है ? हम यह एकदम मान लेते हैं कि अन्य सब जातियोंके रोगियोंकी भाँति, भारतीय रोगी भी, पृथक् निवास और ऐसी विशेष चिकित्सासे बचनेके लिए, जिसे वे शायद समझते नहीं, अपने कष्टोंको घटाकर बतलाते होंगे या रोगकी सूचना ही नहीं देते होंगे, या अधिकारियोंको भ्रममें रखनेका यत्न करते होंगे; परन्तु साथ ही हमें विश्वास है कि डॉ० म्यूरिसन भी यदि विचार करेंगे तो वे समझ जायेंगे कि इन लोगोंपर झूठ बोलनेका लांछन लगाना और फिर उसीके आधारपर उन्हें जबरदस्ती बस्तियोंमें पृथक् बसानेकी सिफारिश करना उचित बात नहीं है। हम उन्हें यह याद दिला दें कि लॉर्ड कर्ज़न जब भारतके वाइसरॉय थे तब उन्होंने भी एक बार विश्वविद्यालयके विद्यार्थियोंके सामने भाषण देते हुए इसी प्रकारका एक नासमझीका काम किया था; और उसके कारण उन्हें
१. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ३५७ ।
२. सन् १९०५ में एक भारतीय विश्वविद्यालयके दीक्षान्त समारोह में बोलते हुए लॉर्ड कर्ज़नने कहा था कि प्राच्य देशों में धूर्तता तथा कूटनीतिक छल-प्रपंचकी सदा सराहना की गई है। गांधीजीने उस समय इसका विस्तृत प्रत्युत्तर दिया था; देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ४२०-२४ ।
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