तक काफी रुकना पड़ता है । अनिश्चित समय तक बाहर सड़कपर खड़े रहना, और कुछ न सही, बहुत थका देनवाला तो होता ही है। वस्तुतः जिन लोगोंको वहाँ खड़े रहकर प्रतीक्षा करनी पड़ी है, उन्होंने अक्सर ब्रिटिश भारतीय संघसे इसकी शिकायत की है। फिर, हवा, धूप और वर्षासे बचनेका भी कोई प्रबन्ध नहीं है । जब प्रतीक्षा करनेवालोंकी संख्या बहुत ज्यादा होती है तब तो यह समझना भी उनके लिए कठिन होता है कि अब सड़कपर खड़े हों अथवा पटरीपर; क्योंकि तब वे जहाँ-कहीं भी खड़े होंगे, रास्ता रुकेगा । सार्वजनिक कार्यालयोंसे जिस जनताका साबका पड़ता है, एशियाई भी चूंकि उसीका अंश हैं इसलिए हमारी नम्र रायमें अन्य सार्वजनिक कार्या- लयोंकी भाँति आपके कार्यालय में भी उनके लिए ठीक स्थानका प्रबन्ध होना चाहिए जिसका उन्हें अधिकार है । "
मो० क० गांधी
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३-८-१९१२
जुलाई २२, १९१२
गृह-सचिव
प्रिटोरिया
महोदय,
१९ तारीखका आपका तार और पत्र प्राप्त हुए । तदर्थ धन्यवाद ! इस वर्षके छ: शिक्षित भारतीय प्रवेशाथियोंके नामोंकी सूची में यथासमय भेजूंगा ।
आपका
मो० क० गांधी
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५६६८) तथा २७-७-१९१२ के'इंडियन ओपिनियन से ।
१. श्री चैमनेने इस पत्रके उत्तर में २६ जुलाईके अपने पत्रमें लिखा :"... मेरे कार्यालय में आनेवाले एशियाइयोंकी सुविधाके लिए कोई विशेष स्थान उपलब्ध नहीं है, और न ही इस कार्य के लिए हमें कोई पैसा मिल सकता है जिससे इस समय विशेष स्थानका प्रबन्ध किया जा सके। आपके पत्रके अन्तिम वाक्यके बारेमें मुझे यह कहना है कि मैंने ठीक पता चला लिया है कि ऐसे बहुत-से कार्यालय है जहाँ साधारण जनताको-- जिसमें यूरोपीय भी शामिल हैं- जाना पड़ता है; किन्तु जहाँ विशेष स्थानको कोई सुविधा नहीं है ।" इंडियन ओपिनियन, ३-८-१९१२ ।
२. देखिए " पत्र : गृह-मन्त्रीको ", पाद-टिप्पणी १, पृष्ठ २७८ ।
३. यदि गांधीजीने सूची भेजी हो तो वह उपलब्ध नहीं है ।