लगता पत्र : एशियाई पंजीयकको २८१ कि यदि हम चेचकका केस जाहिर कर देंगे, तो ये लोग हमें मार ही डालेंगे अथवा अस्पतालमें ले जाकर हमें हैरान करेंगे। इस अज्ञान और इससे उत्पन्न होनेवाले भयके कारण हम इस बीमारीको छिपाते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि कोई इस कारण हमें मार डाले, यह हो नहीं सकता। और यदि हममें तेज हो, तो अस्पतालमें भी कोई हैरान नहीं कर सकता। तो फिर हम डरते किसलिए हैं ? एक बात और है; झूठ बोलकर हम बीमारी छिपा भी नहीं सकते । सच्चा डर तो झूठ बोलनेका होना चाहिए। झूठ बोलने और बीमारीकी बात छिपाने और फिर उसके जाहिर हो जानेसे हमारी फजीहत ही होती है । हमारे ऊपर मुकदमा चलता है और सजा भी हो जाती है। बीमारी छिपाई हो, तो अस्पताल में भी हमें ज्यादा हैरान किया जाता है । हमारे नाते-रिश्तेदारोंको भी उसमें घसीटा जाता है। हम इस सवालको इस तरह देखना सीखें, तो फिर हमें डरनेका कोई कारण न रहे । किन्तु जो लोग सरकारी अधिकारियोंको धोखा देते हैं, हमारी यह टीका उनमें से शायद ही किसीकी नजरसे गुजरे। इसलिए जिम्मेदारी केवल नेताओंपर है । यदि हम ईमानदार हों, ईमानदारीपर दृढ़ रहें और ऐसी इच्छा करें कि दूसरे लोग भी ईमानदार हों तो बहुत-कुछ कर सकते हैं। नेताओंका कर्त्तव्य है कि वे समाजके गरीब लोगोंके सम्पर्क में आयें और आते रहें, उन्हें बार-बार सही रास्ता दिखायें और स्वयं भी उसी रास्ते चलें । यदि हम ऐसा करें, तो फिर हमारे ऊपर एक भी आरोप लगाये जानेकी सम्भावना न रह जाये । [ गुजरातीसे ] इंडियन ओपिनियन, २०-७-१९१२ | सेवा में एशियाई पंजीयक प्रिटोरिया महोदय, ] २४०. पत्र : एशियाई पंजीयकको' जुलाई २२, १९१२ आपका इसी माहकी १३ तारीखका कृपापत्र मिला । उत्तरमें निवेदन करना चाहता हूँ कि आपके कार्यालय के बाहर प्रतीक्षा करनेवाले भारतीयोंको बहुत अधिक असुविधा उठानी पड़ रही है। जैसा कि आप जानते हैं, बहुतोंको अपनी बारी आने १. यह पत्र एशियाई पंजीयक श्री चैमनेके १३ जुलाईके पत्रके उत्तर में भेजा गया था। श्री चैमनेने लिखा था : "इस माहकी ११ तारीखको आपकी मेरे साथ जो भेंट हुई थी, उसके संदर्भमें यदि आप मेरे कार्यालय के सामने सड़कपर प्रतीक्षा में खड़े रहनेवाले भारतीयोंको जो असुविधाएँ होती हैं और वे क्या चाहते हैं, इस सम्बन्धमें एक लिखित बयान दें तो मैं आभारी होऊँगा । " इंडियन ओपिनियन, ३-८-१९१२ । Gandhi Heritage Porta
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३१७
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