[ लॉली ]
जुलाई २९, १९१२
[ महोदय, ]
आपका इसी २६ तारीखका कृपा-पत्र' प्राप्त हुआ । मेरी नम्र रायमें, अगर किसी खास समुदाय के लोग सरकारी दफ्तर में लोगों को बैठाने आदिके लिए कोई समुचित व्यवस्था कर देनेकी प्रार्थना करते हैं और उत्तरमें एक इतनी बड़ी सरकार यह कहती है कि पैसेका अभाव है तो इसे कोई सन्तोषजनक कारण नहीं माना जा सकता।
मेरी समझ में मेरे पत्रके अन्तिम अंशका अर्थ नहीं समझा गया। मेरे कहनेका मतलब यह नहीं था कि दूसरे सरकारी दफ्तरोंमें लोगोंको बैठाने आदिकी कोई विशेष, यानी असाधारण, व्यवस्था है। मैं इतना ही निवेदन करना चाहता था, और अब भी मेरा यही निवेदन है, कि दूसरे सरकारी दफ्तरोंमें आम जनताके बैठनेके लिए पर्याप्त स्थान हैं । मेरी जानकारीके मुताबिक तो आपके दफ्तरके अलावा और कोई भी सरकारी दफ्तर ऐसा नहीं है, जहाँ जनताको पैदल-पटरियों या आम सड़कों पर खड़े रहना पड़ता हो ।
मो० क० गांधी
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३-८-१९१२
अगस्त १, १९१२
कल रात ट्रान्सवालके भारतीय सत्याग्रह संघर्षके सबसे कठिन दौरको चर्चा हुई और उसमें श्री गांधीने आगाह किया कि सम्भव है, स्वेच्छासे सपरिश्रम कारावास भोगनेवाले लोगोंको फिर ऐसे ही कष्ट उठाने पड़ें; और कहा कि उन्हें इसके लिए तैयार रहना चाहिए ।
१. देखिए पृष्ठ २८२, पाद-टिप्पणी १ ।
२. इस प्रीतिभोजका आयोजन श्री चेट्टियारके भारत लौटनेके अवसरपर जोहानिसबर्गके तमिल समाज द्वारा किया गया था । समारोह में कोई ३०० लोग उपस्थित थे, जिनमें भारतीयोंसे सहानुभूति रखनेवाले बहुत-से यूरोपीय सज्जन भी शामिल थे। इस अवसरपर रेवरेंड डॉ० रॉस, रेवरेंड डोक तथा हॉस्केन भी बोले थे। ११-१९