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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३२८

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काम करते हुए समाजकी सेवा भी अवश्य करेंगे। पिछले वर्ष आये हुए लोगोंके सम्बन्ध-में मैंने श्री लेनसे खास तौरपर बातचीत की थी। तब मैंने उनसे कहा था कि मैं गारंटी तो नहीं दे सकता, फिर भी मुझे आशा है कि श्री सोढाको छोड़कर उनमें से कोई दूसरा व्यक्ति व्यापार नहीं करेगा। मैंने उन्हें यह भी बताया कि श्री सोढा यहाँ युद्धसे पहले तीन वर्ष रह चुके हैं और निःसन्देह उनका इरादा व्यापार करनेका है। परन्तु श्री सोढाके व्यापार करने का अर्थ किसी भी तरह यह नहीं है कि वे समाज के लिए कतई उपयोगी नहीं रह जायेंगे। यह तो मानना ही पड़ेगा कि शिक्षित व्यक्तिकी हैसियतसे ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेवाला हर आदमी अपने देशभाइयोंके बीच कोई-न-कोई स्वतन्त्र धन्धा करके रोजी कमायेगा । मैं आशा करता हूँ कि श्री सोढाके बारेमें शीघ्र ही निर्णय किया जायेगा । आप इस पत्रकी एक नकल मुझे भेज दें तो कृपा होगी, क्योंकि मैं स्वयं इसकी नकल नहीं कर पाया हूँ ।'

आपका

[ मो० क० गांधी ]


टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५६९७) की फोटो - नकलसे ।


२५२. बली वोरा और चंचलबहन गांधीको लिखे पत्रका अंश

[ अगस्त ३, १९१२ के बाद ]

चि० बली और चंची,

तुम दोनोंके पत्र मिले ।

मेरा खयाल है कि रामीका हाथ टूटने में थोड़ा-बहुत दोष तुम दोनोंका है। यों ऐसी दुर्घटनाएँ तो हुआ ही करती हैं। यदि भाग्य में जिन्दगी लिखी है तो ईश्वर ऐसी दुर्घटनाओंसे भी बचा लेता है।

चि० वेणीने' लिखा है कि चंची यहाँ आ जाना चाहती है। उसे इतना तो समझना ही चाहिए कि वह जब चाहे तब आ सकती है। मैंने तो उसे यह सोचकर


१. एशियाई पंजीयकने इसके जवाब में १६ अगस्तको लिखा कि “ ... जबतक कोई ऐसा कानून पास नहीं कर दिया जाता जिसके द्वारा खास तौरसे बरी करार दिये गये शिक्षित एशियाइयोंके निवासको वैध रूप मिल जाये, तबतक यह कानून सम्मत नहीं होगा कि राजस्व आदाता उनके नाम सामान्य विक्रेता-परवाने जारी करे। मुझे खेद है कि उपर्युक्त कारणले मैं किसी राजस्व आदाताको ऐसा आदेश नहीं दे सकता कि वह श्री सोढाके नाम, जो फिलहाल ट्रान्सवालमें एक अस्थायी अनुमतिपत्रके आधारपर रह रहे हैं, व्यापारिक परवाना जारी करे ।" (एस० एन० ५६९६ )

२. मणिलाल डॉक्टर, जिनका उल्लेख पत्रके अन्तिम अनुच्छेदमें किया गया है, जुलाई २६, १९१२ को जहाज द्वारा केप टाउनसे फीजीके लिए रवाना हुए थे और इसकी सूचना इंडियन ओपिनियन में ३ अगस्तको जाकर छपी थी (हालांकि उसमें छपाईकी भूलसे प्रस्थान तिथि २० जुलाई बताई गई थी )। अतः यह पत्र ३ अगस्तके बाद ही लिखा गया होगा।

३. प्रिटोरियाके एक प्रमुख भारतीय जयशंकर व्यासकी पत्नी।