इन कारणोंसे, स्वार्थकी दृष्टिसे देखते हुए भी, हमारा कर्त्तव्य है कि
(१) हम उनका स्वागत बड़े पैमानेपर करें।
(२) स्वागतमें हिन्दू-मुसलमानका सवाल नहीं उठना चाहिए ।
(३) विभिन्न संस्थाएँ अलग-अलग सम्मान करें, इसमें तो कोई आपत्ति नहीं है, किन्तु उन्हें इस बातका खयाल रखना चाहिए कि सर्वोपरि वे भारतीय हैं ।
(४) उन्हें दक्षिण आफ्रिकाके सारे [ भारतीय ] समाजका मेहमान मानना चाहिए।
(५) यदि हम ऐसा आभास होने देना चाहते हैं कि वे हिन्दू हैं तो उनके सम्मान में मुसलमानोंको आगे बढ़कर हिस्सा लेना चाहिए। समाजकी इन दो शाखाओंका भाईचारा इसी तरह बढ़ सकता है ।
(६) श्री गोखलेका समुचित सम्मान करनेके लिए हमें काफी पैसा इकट्ठा करनेकी जरूरत है ।
(७) अपनी प्रतिष्ठाकी दृष्टिसे और वे यहाँ जो काम करनेके लिए आ रहे हैं, उसका खयाल करके हमें उन्हें बहुत अच्छी जगह ठहरानेकी व्यवस्था करनी चाहिए।
(८) यदि कहीं फूटका वातावरण हो और संस्थाएँ साथ मिलकर काम न करती हों, इस अवसरपर वहाँ भी एकताका वातावरण फैलना चाहिए । ऐसा अवसर फिर नहीं आयेगा । इस मौकेपर किया हुआ परिश्रम और प्रदर्शित एकता चिरकाल तक हमारे काम आती रहेगी ।
[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-८-१९१२
श्रावण सुदी ४ [ अगस्त १६, १९१२]
चि० छगनलाल,
इन दिनों वा सख्त बीमार है अनीकी हालत चिन्ताजनक है और किसना भी बीमार है । कहा जा सकता है, तीनों खटियापर पड़े हैं। मैं तीमारदारीमें व्यस्त होनेके कारण दूसरा कोई काम नहीं कर सकता। रातको किसना और नगीन मेरे पास सोते हैं, इसलिए नींद भी ऐसी ही होती है। गोकुलदास' यहाँ है । वह अनीके पास
१. पत्रमें कस्तूरबा गांधी और अनी देसाईंकी बीमारीका उल्लेख है; इनकी बीमारियोंका उल्लेख सन् १९१२ की डायरीमें भी है । पत्र सन् १९१२ का ही है, इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि कोटवाल, जिनका नाम पत्रमें आया है, संस्थाके सदस्यके रूपमें, टॉल्स्टॉय फार्ममें सन् १९१२ में ही कार्य कर रहे थे । इस वर्ष श्रावण सुदी ४ अंग्रेजी तिथि-गणनाके अनुसार अगस्त १६ को पड़ी थी ।
२. बा और अनी ११ तारीखको बीमार पड़ी थीं; देखिए १९१२ की डायरी में उस दिनकी टीप ।
३ और ४. अनी और पुरुषोत्तमदास देसाईके पुत्र ।
५. पीताम्बरदास गांधीके पुत्र और गांधीजीके चचेरे भाई ।