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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३४०

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२६३. एक उदात्त जीवन-गाथा इस लेख के नायक, श्री गोखलेसे लोग इतने सुपरिचित हैं कि वे कौन और क्या हैं, यह कहना आवश्यक नहीं है। उन्होंने दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके पक्षकी जो अनवरत वकालत की है और उनके कष्टोंके प्रति जैसी सहानुभूति दिखाई है, उसे वे भारतीय अत्यन्त कृतज्ञतापूर्वक याद करते हैं। भारत में ने टालके लिए होनेवाली गिरमिटिया मजदूरोंकी भर्ती बन्द करा देनेका अधिकांश श्रेय उन्हींको है और वे अपने इस कार्यके लिए सदैव याद किये जायेंगे। इधर हालमें श्री गोखले वाइसरॉयकी कौंसिलमें वह विधेयक प्रस्तुत करनेमें लगे रहे, जिसका मन्शा भारतमें प्रत्येक बच्चेको निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुलभ कराना था । यद्यपि वे इसमें असफल हुए, परन्तु श्री गोखले असफलतासे निराश होनेवाले व्यक्ति नहीं हैं। विधेयकके भविष्यको अन्धकारपूर्ण देखकर भी उन्होंने इसकी कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने परिषदमें अपने भाषण में कहा, १८७० का कानून पास होनेके पहले इंग्लैंड में इस दिशा में किये गये प्रामाणिक प्रयासों का क्या हाल हुआ था, इस बातको मैं बखूबी जानता हूँ; अतः मैं न तो अपनी इस विफलतासे मायूस हुआ हूँ और न मुझे उसकी शिकायत है । मैंने हमेशा महसूस किया है और बहुधा कहा भी है कि हम, भारतकी वर्तमान पीढ़ीके लोग, अपनी विफलताओंके द्वारा ही भारतकी सेवा करनेकी आशा कर सकते हैं।" ऐसे हैं हमारे आजकी चर्चा विषय श्री गोखले ! उनका जीवन मातृभूमिकी सेवामें व्यतीत हुआ है, और भारतमें तथा अन्यत्र करोड़ों लोगों की प्रार्थना है कि उन्हें अपने इतने प्रिय कामको अंजाम देनेके लिए बड़ी उम्र मिले। " गोपाल कृष्ण गोखलेका जन्म भारतके कोल्हापुर नामक शहरमें सन् १८६६ में हुआ था । उनके माता-पिता गरीब थे, परन्तु वे स्थानीय कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजे गये । वे एक सफल छात्र थे और उन्होंने अपनी बी० ए० की पढ़ाई मुख्य रूपसे एलफिन्स्टन कॉलेज, बम्बई और अंशतः डेकन कॉलेज, पूना में पूरी की । १८८४ में डिग्री लेनेके बाद वे डेकन शिक्षा समिति (डेकन एजूकेशन सोसायटी) के सदस्य बन गये । इस समिति के आजीवन सदस्य फर्ग्युसन कॉलेजमें और सोसाइटीके अन्य स्कूलोंमें २० साल तक मात्र ७५ ) रुपये मासिक वेतनपर काम करनेकी प्रतिज्ञा करते हैं। कुछ समय तक श्री गोखलेने अंग्रेजी और गणित के प्राध्यापक के रूपमें काम किया, किन्तु अपने अधिकांश सेवाकालमें वे इतिहास तथा अर्थशास्त्रके शिक्षक रहे। इन दोनों विषयोंपर उनका जबरदस्त अधिकार है और वे इनके विशेषज्ञ माने जाते हैं । अपने कार्यके प्रति उनकी भक्ति और अनुरक्ति इतनी तीव्र थी कि कई वर्षोंतक उन्होंने अपनी छुट्टियाँ भी निरन्तर यात्रा करते हुए, तकलीफें सहते हुए व अपमान झेलकर कोष इकट्ठा करनेमें बिताईं । यद्यपि श्री गोखलेन कभी भी प्रिंसिपलका पद नहीं सम्हाला, फिर भी उसके कार्य संचालनमें उनका बड़ा हाथ होता था । जिस समय उन्होंने फर्ग्यु- सन कॉलेज में प्रवेश किया, लगभग उसी समय वे जस्टिस रानडेके सम्पर्क में आये और Gandhi Heritage Portal