३०६ सम्पूर्ण गांधी वाङमय श्री गोखलेने १९०५ में सवेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटीकी स्थापना की। श्री गोखले- का विश्वास है कि मातृभूमिको ऐसे लोगोंकी बेहद जरूरत है जो स्वेच्छापूर्वक अपना जीवन सेवा में लगा दें। इस संस्थाके माध्यम से वे ऐसे सेवकोंका निर्माण कर रहे हैं जो भारतके लोगोंको भौतिक व नैतिक लाभ पहुँचानेवाली शिक्षा देनेका उदात्तकार्य कर सकें। उसी वर्ष श्री गोखले बम्बईकी जनताकी तरफसे एक कार्य-विशेषके लिए इंग्लैंड गये और वहाँ भारत रवाना होनेके समय उन्हें बनारस में होनेवाली आगामी कांग्रेसके सभापति बननेका साग्रह निमन्त्रण मिला । श्री गोखले उस समय स्वस्थ न थे और यदि उन्होंने इस कठिन कर्त्तव्यको अपने हाथोंमें लेनेसे इनकार कर दिया होता, तो भी अनुचित न होता । परन्तु अन्तमें उन्होंने सार्वजनिक आग्रहको मान दिया । श्री गोखलेने सभापति पद से जो भाषण दिया, उसमें लॉर्ड कर्जनके प्रशासन, बंगालके विभाजन, स्वदेशी आन्दोलन, भारतीय जनताकी अपने देशके प्रशासन में अधिक हिस्सेकी माँग आदि बातोंपर बड़े ही अच्छे ढंगसे प्रकाश डाला गया था। श्री गोखलेके जीवनकी इस छोटी-सी रूपरेखामें इसकी या उनके अन्य भाषणोंकी अधिक चर्चा करना सम्भव नहीं है, परन्तु हम पाठकोंको सलाह देंगे कि वे श्री गोखलेके प्रकाशित भाषण प्राप्त करें और उनका अध्ययन करें। कुछ और न कहकर अब इस लेखका उपसंहार हम श्री नटेसन द्वारा प्रकाशित 'द स्पीचेज़ ऑफ ऑनरेबल मि० जी० के० गोखले ' (माननीय श्री गो० कृ० गोखलेके भाषण ) की सुन्दर प्रस्तावनाकी अन्तिम पंक्तियाँ उद्धृत करके करना चाहेंगे। हमने उनके जीवनकी इस रूपरेखाके लिए तथ्योंका संचय उक्त प्रस्तावनासे ही किया है। स्वभावसे उदार, वे कभी भी अपने विरोधियोंकी भावनाओंपर चोट नहीं करते, चाहे वे स्वयं उनपर कितना ही कठिन प्रहार क्यों न कर रहे हों। वे नरमदलीय राजनीतिक विचारधाराके माने जाते हैं, किन्तु उनका स्वभाव दलीय व्यक्ति (पार्टी-मैन) के स्वभावसे कोसों दूर है। जिसका मतलब झगड़नेके सिवा कुछ और नहीं होता, ऐसे किसी झगड़ेमें वे कभी नहीं पड़ते। वे सबसे ज्यादा व्यग्र इस बात के लिए हैं कि सभी दलोंको देशप्रेमकी सामान्य डोरसे बाँधकर एक कर दिया जाये । वे जिन परिस्थितियों और जिस वातावरणमें बड़े हुए हैं उनसे उन्हें कठोर आत्म-निरीक्षणकी शिक्षा मिली है और इसलिए वे दलीय भावनाके कुटिल प्रभावसे मुक्त रहनेकी दिशामें सदैव सावधान रहते हैं, तथा देशभाइयोंके प्रति अपने प्रेमको व्यर्थके भेदोंसे कभी भी दूषित नहीं होने देते । मनसा वाचा कर्मणा पवित्र, किसी वस्तुको सहज ढंगसे स्पष्ट कर देनेकी कलामें दक्ष, उत्तेजित किये बिना प्रेरणा प्रदान करनेवाले वक्ता, शान्तिप्रिय किन्तु संघर्षोंसे न डरनेवाले नागरिक, आदेशों का पालन करनेकी शालीनता और आदेश देनेकी क्षमतासे युक्त कार्यकर्ता, अपने उद्देश्यमें अडिग आस्था रखनेवाले प्रगतिके सेनानी श्री गोखले वास्तवमें भारतके सच्चे सेवक हैं । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, २४-८-१९१२ Gandhi Heritage Porta
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३४२
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