हम यह प्रयास तो गत आठ वर्षसे कर रहे हैं।[१] हमने इस दौरान जहाँ व्यापारियोंके लिए वस्तुओंकी दरें और कीमतें प्रकाशित की हैं वहीं गम्भीर विषयोंपर भी चर्चा की है। 'इंडियन ओपिनियन' के गुजराती अनुभागमें चार पृष्ठसे लेकर बीस पृष्ठ तक की सामग्री दी जाती रही है। अब आशा है कि अधिकतर दो तरहकी सामग्री प्रकाशित होगी। एक तो ऐसी सामग्री रहेगी जिससे समाजको यथासम्भव उन कठिनाइयोंके सम्बन्धमें पूरी-पूरी सूचना देनेका यत्न किया जायेगा जिससे हम पीड़ित हैं। साथ ही इसके निदानकी राह भी सुझाई जायगी। दूसरे, ऐसी सामग्री दी जायेगी जिसमें जन-चरित्रके नैतिक आचार-विचारोंका निरूपण होगा अथवा साररूपेण इस समस्यापर महान व्यक्तियोंके विचार प्रस्तुत किये जायेंगे। इस प्रकार, आशा है कि 'इंडियन ओपिनियन' शिक्षाका साधन बन जायेगा।
[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९१३
३१२. सम्राट्की भारतीय नौ-सेना
समाचारपत्रों में एक समुद्री तार छपा है जिससे ज्ञात होता है कि भारतके देशी राजा लोग साम्राज्य सरकारकी सहायताके लिए कुछ जंगी जहाज भेंट देनको तैयार हैं। इसका तखमीना नहीं लगाया गया है परन्तु इसमें २१० लाख पौंडकी लागत लगेगी। अर्थात् इसमें ३१ करोड़ ५० लाखका खर्च पड़ेगा। इस व्ययका औसत निकालनेपर प्रत्येक भारतीयपर १ रुपये का खर्च पड़ता है। लेकिन यह आंकड़े अपर्याप्त हैं। इससे सचाईका सही-सही अन्दाजा नहीं लग सकता। जंगी जहाजोंके सम्बन्धमें जो नाम लिए जाते हैं उनमें निज़ाम और मैसूर, बड़ौदा, ग्वालियर, काश्मीर, त्रावणकोर- कोचीन, और राजपूतानाके महाराज तथा नेपाल-नरेश आदिके नाम आते हैं। इन सारे रजवाड़ोंकी कुल आबादी लगभग ४ करोड़ है। अब इन जंगी जहाजोंकी लागतके लिए जो कर वसूला जायेगा वह यहींकी जनतासे उगाहा जायेगा। वह कर प्रत्येक व्यक्तिके ऊपर ८ रुपये पड़ेगा। अब एक अत्यन्त गरीब आदमीके सिर यह रकम चार महीनेकी कमाई होती है। और यह बात भी निश्चित है कि राजा लोग यह रकम आसमान से नहीं लानेवाले हैं। इसका बोझ उनकी मासूम प्रजाको ही ढोना पड़ेगा। लेकिन साम्राज्य सरकारके सम्मानके अनुरूप ही एक शुभ समाचार यह आया है कि रायटरका यह समाचार निराधार है, और सम्भवतः यह बात इसलिए निराधार ठहरी है कि भारतकी किस्मत अच्छी है और भारतीय प्रजापर अभीतक ईश्वरकी कृपा-दृष्टि बनी है। इंग्लैंडके सारे समाचारपत्रोंने इस विचारको अव्यावहारिक मानकर इसकी उपेक्षा कर दी। कुछ समाचारपत्रोंने तो इसके विरुद्ध जोरदार विचार प्रकट किये। एक-दो तो यहाँतक कह गये कि यदि इस प्रकारकी कोई सहायता भार-
- ↑ वास्तव में यह अवधि ९ वर्ष है। खण्ड ३, पृष्ठ ३३६-३७ देखें।