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३१९. पत्र : मणिलाल गांधीको

[जनवरी १८, १९१३ से पूर्व][१]

चि० मणिलाल,

तुम्हारे दो पत्र मिले। मैं कोई कदम उतावली में नहीं उठाऊँगा। विचार तो आने ही चाहिए और उनके अनुसार मेरे रहन-सहन में बड़े-बड़े परिवर्तन भी होने ही चाहिए। लेकिन मैं ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाऊँगा जिससे तुम्हें परेशानी हो। तुम्हें निराश नहीं होना चाहिए। ऊँचा उठनेके लिए बड़ा प्रयत्न करना पड़ता है। लेकिन ऊँचे उठ जानेपर तुम्हें असीम प्रकाश मिलेगा। यह बड़े साहसका काम है। तुम यह काम करने में समर्थ हो; क्योंकि आत्माके गुण [सर्वत्र] एक-से हैं। जिन आवरणोंने आत्माको ढक रखा है, उनको हटानेपर तुम अपनी शक्ति स्वयं ही देख सकोगे। उसकी कुंजी यम-नियम है। यम-नियमके सम्बन्धमें बादमें लिखनेका सोच रहा हूँ। लिखनेको और भी है, लेकिन अभी समय नहीं है। 'शतक' वाले श्लोकको सुधार दिया है। उसे ठीकसे देखना। समझमें न आये तो फिर पूछना। जो पढ़ो उसपर हमेशा खूब विचार करो। बिना विचारे एक भी बात न बोलना, एक भी शब्द न लिखना तथा एक भी कार्य न करना।

आज डेविड अर्नेस्ट आदि आ रहे हैं।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० १०५) से।

सौजन्य : सुशीलाबहन गांधी

३२०. क्या फिर सत्याग्रह करना पड़ेगा?

हमें सारे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजको एक अत्यन्त महत्वपूर्ण सूचना देनी है। शायद अगले सप्ताह हम उस मामलेका पूरा विवरण दे सकें, जिसके कारण पुनः सत्याग्रह शुरू करना आवश्यक हो गया है; वैसे हमने यह आशा बाँध रखी थी कि अब उसकी आवश्यकता नहीं होगी। हमें मालूम हुआ है कि उन ब्रिटिश भारतीयोंके बारेमें सरकार अपने वादेका पालन नहीं कर रही है, जिन्हें समझौतेकी शर्तोंके अनुसार यथाशक्ति ट्रान्सवाल या संघ में, अधिवासका अधिकार दिया जाना चाहिए। लगता है कि वह सत्याग्रह- समिति द्वारा भेजे गये सभी नामोंको स्वीकार करनेसे

  1. इस पत्रमें गांधीजीने अपने जीवन में जिस भारी परिवर्तनका जिक्र किया है, उससे तात्पर्य सम्भवतः उनके १९१३ के मध्य में भारत जाने के निश्चयसे है, जो १८-१-१९१३ के इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित किया गया था।

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