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३२२. भारतीय बच्चोंको शिक्षा

सरकारी स्कूलोंके शिक्षकों के पथप्रदर्शनके लिए 'नेटाल प्रॉविंशियल गज़ट' में निम्नलिखित नियम प्रकाशित हुए हैं:-

किसी भी वतनी, भारतीय या रंगदार बच्चेको उन स्कूलोंके सिवाय, जो खास तौरपर उनके लिए खोले गये हैं, किसी दूसरे स्कूलमें भरती न किया जाये।

जिन भारतीय स्कूलों में पढ़ानेवाले शिक्षक यूरोपीय हैं उनमें दूसरी कक्षासे नीचेकी क्षेणीमें कोई विद्यार्थी न लिया जाये।

यूरोपीय शिक्षकोंके निरीक्षणमें चलनेवाले किसी भी भारतीय स्कूलमें स्कूलके घंटों में प्रारम्भिक स्कूलोंके प्रामाणिक पाठ्यक्रम में दिये गये विषयोंके अलावा कोई अन्य विषय न पढ़ाया जाये।

चौथी कक्षा पास कोई भी विद्यार्थी किसी प्राथमिक (एलिमेंटरी) भारतीय स्कूलमें नहीं रहने दिया जायेगा।

अभीतक कोई ऐसे नियम गज़टमें प्रकाशित नहीं थे जिनसे भारतीय बच्चोंके खास तौर से अपने लिए स्थापित स्कूलोंके अलावा अन्य स्कूलोंमें भर्ती होनेपर प्रतिबन्ध लगता हो। किन्तु प्रस्तुत नियमोंने परिस्थिति पूरी तरह बदल दी है। यह तो प्रान्तीय प्रशासनकी चुनोती है। उसने इसे कानूनका विषय बना दिया है। इसके अलावा नियम, बहुत-सी अन्य बातोंमें भारतीयोंकी शिक्षाके लिए बाधक हैं। परिणामतः सरकारी स्कूलों में भारतीय भाषाएँ पढ़ाने तथा हमारे बच्चोंके प्रारम्भिक शिक्षासे आगेकी शिक्षा प्राप्त करनेपर रोक लग जायेगी। भारतीय माता-पिताओंका कर्त्तव्य स्पष्ट है। उन्हें अपने बच्चोंके शिक्षणका राष्ट्रीय पैमानेपर पर्याप्त प्रबन्ध करना चाहिए। हमें अपने स्कूल खोलने चाहिए, जिनमें हमारे बच्चोंको अपनी मातृभाषाएँ सीखने और उनके द्वारा अपना इतिहास पढ़नेका अवसर प्राप्त हो। हमारे लिए यह गम्भीर चिन्ताका विषय है कि हमारे बच्चोंका पालन और संवर्धन ऐसी किसी समुचित नींव के बिना हो रहा है, जिसपर उनके चरित्रका निर्माण हो सके।[१]

[अंग्रेजीसे]

इंडियन ओपिनियन, १८-१-१९१३

  1. देखिए "भारतीय माता-पिताओंके लिए", पृष्ठ १४०-४१ भी।