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३२३. इंग्लैंडका सबसे बड़ा ग्राहक

"स्टेट्समैन" कलकत्ताकी आर० नाइट ऐंड सन्स नामक पेढ़ीने इंग्लैंडके अखबारोंको एक पत्र भेजा है। इस पत्रमें उन्होंने बताया है कि भारत इस समय इंग्लैंडका सबसे बड़ा ग्राहक है। सन् १९११ में उसने इंग्लैंडसे ५,२२,४६,००० पौंडका माल खरीदा था, जबकि इंग्लैंड के महान् प्रतिस्पर्धी जर्मनीसे केवल ३,९२,८४,००० पौंडका। ये महानुभाव आगे बताते हैं कि भारत ब्रिटेनकी उपज तथा तैयार मालका १४.५ प्रतिशत खरीदता है, जबकि आस्ट्रेलिया सिर्फ ८ प्रतिशत और कैनेडा तथा दक्षिण आफ्रिका मात्र ६–६ प्रतिशत ही खरीदते हैं। इन आँकड़ों में एक ऐसी नसीहत छिपी हुई है जिसे साम्राज्य के प्रत्येक शुभेच्छुको समझाया जाना चाहिए। ऊपर हमने जिन उपनिवेशोंके नाम लिये हैं वे ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति अपने व्यवहारको दृष्टिसे सबसे बड़े अपराधी हैं और भारत के मुकाबले ब्रिटेनसे उनका व्यापार भी बहुत कम है। जब भारतको अपनी शक्तिका भान होगा तब स्वशासित उपनिवेशोंमें ब्रिटिश भारतीयोंकी निर्योग्यताओंका सवाल निपटाने में ब्रिटिश राजनयिक 'असमर्थता' की जिस नीतिका आश्रय लेते रहे हैं उसका औचित्य सिद्ध करना उनके लिए मुश्किल हो जायेगा। उदाहरण के लिए, तब वे दक्षिण आफ्रिकामें दूसरी बार संकटकी घड़ी उपस्थित होने तक प्रतीक्षा करते नहीं बैठे रहेंगे। हम स्पष्ट देख रहे हैं कि यदि गृह मन्त्रीने यहाँके भारतीयोंको चुभने वाली अनेक बातोंको दूर नहीं किया तो यह संकटकी घड़ी आकर रहेगी। प्रवास सम्बन्धी नीति बिलकुल असह्य होती जा रही है।

[अंग्रेजीसे]

इंडियन ओपिनियन, १८-१-१९१३

३२४. लॉर्ड ऍम्टहिलको समिति[१]

जो समिति इंग्लैंडमें चलती है और जिसने, सभी मानते हैं, हमारे लिए बहुत बड़ा काम किया है, आज तक का उसका खर्च प्रायः ट्रान्सवालपर ही पड़ा है। यह स्थिति सदा नहीं चल सकती। फिर इस समितिने काम सारे दक्षिण आफ्रिकाके लिए किया है। ऐसी स्थितिमें इसका खर्च केवल ट्रान्सवालपर डालना स्पष्टतः अनुचित है। सभी इस समितिको बनाये रखना नितान्त आवश्यक समझते हैं। इस अंकके दूसरे भागमें पाठक श्री गोखलेके सुझावको पढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा है कि इस समितिके खर्चके लिए २०० पौंड प्रति वर्ष इकट्ठे किये जाने चाहिए और तीन वर्षके लिए कुल मिलाकर ६०० पौंड इकट्ठे किये जाने चाहिए।[२] इस सम्बन्धमें 'इंडियन ओपि- नियन' के पाठक उचित उद्योग करें तो धनसंग्रहमें देर नहीं लगेगी। जो लोग पैसा

  1. देखिए "लॉर्ड ऍम्टहिलकी समिति", पृष्ठ २६९-७० भी।
  2. "डायरी : १९१२", में नवम्बर २६ की टीप, पृष्ठ ४११-१२।