अधिनियमोंको व्यवस्थाओंके अधीन रहते हुए अगले ३१ दिसम्बर तक अपने प्रार्थनापत्र भेजनेका अवसर दिया जायेगा ।
(घ)
जो सात शिक्षित भारतीय अभी ट्रान्सवालमें हैं और जिनके नाम आपने बतलाये हैं उनको कानूनके रद्दोबदल होने तक यहाँ निवास करनेके लिए अस्थायी अधिकारपत्र दे दिये जायेंगे । और कानूनमें रद्दोबदल हो जानेपर ट्रान्सवालमें उनके निवासको प्राधिकृत करनेके लिए स्थायी अधिकार-पत्र दे दिये जायेंगे । तीन शिक्षित मुसलमानोंके निवासको भी एक विशेष रियायत के तौरपर, इसी प्रकार प्राधिकृत कर दिया जायेगा। भविष्य में प्रतिवर्षं आनेवाले
शिक्षित भारतीयोंकी प्रस्तावित संख्या छः ही रहेगी; इन प्रवासियोंकी हमारे बीच यही संख्या तय हुई थी । चालू वर्षमें मामलेकी विशेष परिस्थितिके कारण ही उसे दस तक बढ़ाया गया है।
मन्त्री महोदयको भरोसा है कि एशियाई समाज इन अनुरोधोंके स्वीकार किये जानेका यही अर्थ लगायेगा कि सभी विवादग्रस्त प्रश्नोंपर अन्तिम रूपसे समझौता हो चुका है । इस सम्बन्धमें आपका इस आशयका उत्तर आनेपर एशियाई पंजीयन अधिनियमोंके उल्लंघनके लिए इस समय सजा काटनेवाले सत्याग्रहियोंकी रिहाई करानेके उद्देश्यसे न्याय विभागके साथ लिखा-पढ़ी की जायेगी । जाली प्रमाणपत्र रखने या दूसरे किसीके लिए जारी किये गये प्रमाणपत्रोंको इस्तेमाल करनेके सिलसिले में सजा काटनेवाले बन्दियोंको रिहा नहीं किया जा सकता ।
मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५५३३) की फोटो नकल और २७-५-१९११ के इंडियन ओपिनियन से भी ।
आपके कलके पत्र और आज फोन द्वारा उसके संशोधनके सम्बन्धमें मेरे १९ के पत्रके अनुच्छेद छ: में उल्लिखित १८० एशियाइयों में ट्रान्सवालमें युद्धपूर्व तीन वर्षके निवासके आधारपर ऐसे लोगोंको शामिल करनेपर कोई आपत्ति नहीं जो अभी दक्षिण आफ्रिका में हैं पर जो पंजीयन के लिए उचित अवधि अन्दर प्रार्थनापत्र नहीं दे सके थे । आपके २९ अप्रैल के पत्रके पहले प्रश्नके सम्बन्ध में : व्यक्तियों के वास्तविक वर्तमान अधिकारों को छीननेका तो कोई मन्शा नहीं लेकिन सारे संघके लिए एकरूप और एक सामान्य प्रकारके कानूनले विभिन्न प्रान्तों में [ भारतीयोंकी] स्थितिपर निःसन्देह प्रभाव पड़ेगा। दूसरे प्रश्नके बारेमें ऊपर कहा जा चुका है । तीसरे और चौथे प्रश्नके बारेमें में मैं कलके पत्रके अनुच्छेद क और ख में कह चुका हूँ ।पाँचवें प्रश्नको मेरे कलके पत्रके अनुच्छेद ध में लिया जा चुका है । छठवाँ प्रश्न :शिक्षाका कोई निर्धारित