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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/५५४

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सम्पूर्ण गांधी वांग्मय

प्रश्नपर उदारतापूर्वक विचार करनेको कहेंगे जो वर्तमान एशियाई कानून तोड़नेके अपराध में कैद भुगत रहे हैं ।

  मैं आशा करता हूँ कि भारतीय समाजसे सलाह करनेके बाद आप जनरल स्मट्सको उनके प्रिटोरिया वापस आनेपर सत्याग्रह समाप्त कर दिये जानेकी सूचना दे सकेंगे, ताकि वे सम्राटको सरकारको ऐसा आश्वासन दे सकें कि भारतीय समाजके नेता समस्या के निश्चित हल्की दृष्टिसे सरकारसे सहयोग करना चाहते है ।
आपका,
 
अर्नेस्ट एफ० सी० लेन
 
गृहमन्त्रीका निजी सचिव
 

श्री मो० क० गांधी

केप टाउन

  मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५५००) की फोटो नकल तथा २९-४-१९११ के से भी ।
  
  
  
परिशिष्ट ५
गांधीजीके नाम ई० एम० गॉर्जेसका पत्र
प्रिटोरिया मई १९, १९११
 

महोदय,

  आपके ४ तारीखके पत्रके ही सिलसिले में माननीय मन्त्रीने मुझे आपको यह और सूचित करनेका आदेश दिया है कि -

(क)

उन एशियाइयोंको जिनको अधिनियम २/०७ या ३६/०८ के अन्तर्गत १ जनवरी, १९०८ के बाद निर्वासित किया गया था और जिनको इन अधिनियमों के अन्तर्गत पंजीयन करानेका वैध अधिकार है किन्तु जो सत्याग्रह आन्दोलनके कारण अभी तक प्रार्थनापत्र नहीं दे सके हैं, उनको अगले ३१ दिसम्बर तक, अधिनियमों और विनियमोंकी व्यवस्थाओंके अधीन रहते हुए, प्रार्थनापत्र देनेकी अनुमति दी जायेगी ।

(ख)

अधिनियम २/०७ या अधिनियम ३६/०८ और इनके अन्तर्गत बनाये गये विनियमों के अनुसार अगले ३१ दिसम्बर को या उससे पहले पंजीयन के लिए प्रार्थनापत्र देनेकी अनुमति उन एशियाइयोंको भी दी जायगी जिनका निर्वासन तो नहीं हुआ था लेकिन जो सत्याग्रह आन्दोलनके कारण पंजीयन के लिए प्रार्थना पत्र दिये बिना ही दक्षिण आफ्रिकासे चले गये थे और जो साबित कर सकते हैं कि उनको पंजीयन करानेका वैध अधिकार है; वशर्ते कि (क) और (ख) के अंतर्गत प्राप्त प्रार्थना-पत्रोंकी संख्या तीससे अधिक न हो ।

(ग)

आपके पत्रके पाँचवे अनुच्छेदके संदर्भ में हमारी जानकारी यह है कि दक्षिण आफ्रिकामें ऐसे १८० भारतीय और चीनी हैं जिनका पंजीयन स्वेच्छिक प्रणालीके अंतर्गत नामंजूर कर दिया गया था और जिन्होंने अभीतक अधिनियम २/०७ या ३६/०८ के अंतर्गत अपने प्रार्थनापत्र पेश नहीं किये हैं। मुझे उनके सम्बन्ध में आपको सूचित करना है कि यदि कोई अनुसूचित विलम्ब किये बिना उनके नामोंकी एक सूची पेश कर दी जाये तो उनको उल्लिखित