परिशिष्ट ८
उपनिवेश कार्यालयको दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिका पत्र
थैनेट हाउस
२३१-२३२, स्ट्रैंड़, डब्ल्यू॰ सी॰
जून १७, १९११
- उपनिवेश-उपमन्त्री
- उपनिवेश कार्यालय, एस॰ डब्ल्यू॰
- महोदय,
आपका इसी माहकी १३ तारीखका कृपापत्र, संख्या १८५४२/१९११, प्राप्त हुआ। उसमें मुझे उपनिवेश मन्त्रीकी ओरसे इस बात के लिए आमन्त्रित किया गया है कि यदि मुझे ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा औपचारिक रूपसे किये गये निवेदनके अतिरिक्त कुछ और कहना हो तो मैं उसे लिखित रूपमें उनके सामने पेश कर दूँ ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघके निवेदनकी एक प्रति मुझे भेजी गई है। किन्तु मुझसे केप और नेटालके भारतीयोंकी ओरसे उनकी बात पेश करनेके लिए भी कहा गया है और उनके स्मरणपत्रोंकी प्रतियाँ भी मेरे पास भेजी गई हैं; इसलिए मैं मन्त्री श्री हरकोर्ट से अनुमति चाहूँगा कि मुझे [समस्त] दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजकी स्थिति के बारेमें सामान्य रूपसे कुछ कहने दिया जाये।
२. भारतीय समाजके विभिन्न समुदायोंमें जो भावना सबसे अधिक प्रबल है, वह है भारी क्षोभ और अरक्षितताकी। दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समझ गये हैं कि यदि सम्राटकी सरकार उनके पक्षमें बार-बार हस्तक्षेप न करे तो उनका जीवन दूभर हो जायेगा। उन लोगोंने काफी गहरी आशंका के साथ उस वार्ताकी प्रगतिपर नजर रखी है जिसकी परिणति संघके अधिनियम के पास होनेके रूपमें हुई है। ट्रान्सवालके भारतीयों को भय था कि केप और नेटालके परवाना कानूनों में निहित सिद्धान्तों को वहाँ भी लागू कर दिया जायेगा; और केप और नेटाल प्रान्तोंके भारतीयोंको यह भय था कि ट्रान्सवालमें लागू बस्तियों के पंजीयन और प्रवास सम्बन्धी कानूनों को उनके यहाँ लागू कर दिया जायेगा। वेरीनिगिंग के समझौते के बादसे यह एक प्रवृत्ति देखने में आई है कि समूचे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके साथ एक ही तरहका बरताव किया जाये; और इसका आधार हो उनके साथ [विभिन्न प्रदेशों में] जैसा बरताव होता रहा है उसका सख्त से सख्त रूप। उपनिवेश-मन्त्रीको स्मरण होगा कि लॉर्ड मिलनरने १९०३ में जब बाजार सम्बन्धी आदेश जारी किया था, तब नेटालने उसे शीघ्र ही अपना लिया था। नेटाल्के परवाना-सम्बन्धी सख्त कानूनको केपने अपना लिया था, और अब ट्रान्सवालमें भी उसे लागू करनेकी कोशिश की जा रही है। इसीलिए दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयों में यह भावना बड़ी तेजीसे घर करती जा रही है कि यदि वे अपने यत्किचित् नागरिक अधिकार और सुविधाएँ बनाये रखना चाहते हैं तो उनको अपने हितोंपर संघमें चारों ओरसे होनेवाले नित नये हमलेके खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा खड़ा करना चाहिए। वास्तव में केप और नेटालके भारतीयों द्वारा पिछले सत्याग्रह आन्दोलनके दौरान अनेक प्रकारसे ट्रान्सवालके अपने भाइयोंके दावोंका इतनी मुस्तैदीके साथ समर्थन किये जानेका यह भी एक मुख्य कारण था।
३. ट्रान्सवालके भारतीयोंको सदासे इसका बड़ा भय रहा है कि १८८५ के कानून ३ की उस धाराको लागू करने की कोशिश की जायेगी, जो उन्हें निर्दिष्ट बस्तियोंमें रखनेके लिए बाध्य करती है।