प्रजाजन, चाहे इनके शरीर-गठन, रीति-रिवाज और धर्म यूरोपीय प्रजातियोंसे कितने भी भिन्न क्यों न हों,
विदेशी नहीं हैं। यह बात पर्याप्त रूपसे अनुभव नहीं की गई है कि विशुद्ध स्थानीय कारणोंसे
अधिराज्यों (डोमिनियन्स) ने ऐसी नीति अपनाई है जिसके कारण एशियाई ब्रिटिश प्रजाजनोंको भी
विदेशी एशियाइयोंके समान मान लिया गया है । वस्तुत: उपर्युक्त कारणोंसे कैनेडा अधिराज्यमें जापानी
प्रवासियोंकी अपेक्षा भारतीय प्रवासियोंके प्रति अधिक कठोरता बरती जाती है। एक दूसरा महत्वपूर्ण
तथ्य, जिसकी सामान्यतः उपेक्षा कर दी जाती है, यह है कि ब्रिटिश साम्राज्यके कुछ भागोंमें एशियाई
ब्रिटिश प्रजाजनोंके प्रति बहिष्कारकी ऐसी नीति अपनाई गई है जिसे ब्रिटिश साम्राज्यके बाहरके देशोंने
भी नहीं अपनाया है । निःसन्देह यह सच है कि यद्यपि यूरोपीय शक्तियोंके अधिकारके उष्ण कटिबन्ध
और उससे संलग्न भागोंमें स्थित देशोंकी जलवायु और परिस्थितियाँ ब्रिटिश सम्राटके अधीन उपनिवेशों से
मिलती-जुलती हैं किन्तु वहाँकी स्थानीय अवस्था अभीतक वैसी नहीं हुई है जिसके कारण उपनिवेशोंने
अपनी प्रवास नीति ऐसी बनाई है। फिर भी यह एक विचित्र तथ्य है कि दूसरे राष्ट्र ब्रिटिश भारतीयोंको
ऐसे विशिष्ट अधिकार देते हैं जो उपनिवेशों में उन्हें नहीं दिये जाते ।
यदि यह विचार ठीक हो कि किसी भी प्रजातिको ब्रिटिश प्रजाके हर व्यक्तिको साम्राज्यके किसी भी भागमें अबाध प्रवेशका अधिकार होना चाहिए तो फिर साम्राज्यमें यूरोपीयोंके नये राष्ट्र बनानेकी नीतिका इसके साथ मेल नहीं बैठता; और इस असंगतिपर पर्दा डालनेकी कोशिश व्यर्थ है । इस स्थिति में ब्रिटिश सरकारको इतना कहनेका अधिकार है कि उपनिवेशोंकी नीतिका निर्माण और उसकी अभिव्यक्ति ऐसे ढंगसे की जाये कि उससे गैर-यूरोपीय ब्रिटिश प्रजाजनोंके आत्म-सम्मानपर ख़्वाहमख्वाह आघात न लगे । प्रवेश निषेधको प्रजातीयताको अपेक्षा शैक्षणिक कसौटीपर आधारित करनेसे इस बातकी रक्षा हो जाती है; यद्यपि इसे व्यक्तिशः मामलोंपर लागू करनेमें प्रजातीय आधारपर भारतीयोंको प्रविष्ट न होने देने की गुंजाइश बनी रहती है । कैनेडाके कानूनमें प्रवासको सीमित करनेके ऐसे तरीके मौजूद हैं जिनसे किसी प्रजाति विशेषके विरुद्ध विना कानूनी भेदभाव किये (१) स्थानीय जलवायु या आवश्यकताके लिए अनुपयुक्त समझे गये प्रवासियोंका या किसी विशेष वर्ग, व्यवसाय या चरित्रके प्रवासियोंका प्रवेश रोकनेकी; और (२) प्रवासियोंको एक न्यूनतम निश्चित रकम लेकर ही आने देनेकी सत्ता मिल जाती है ।
इस बात से तो सभी सहमत होंगे कि प्रत्येक उपनिवेशका सर्वाधिक बड़ा नैतिक कर्तव्य यह है
कि वह सबसे अलग हटकर कोई ऐसी कार्रवाई न करे जिससे साम्राज्य किसी विदेशी शक्तिके साथ
युद्धमें फँस जाये । किन्तु इस बातपर अच्छी तरह विचार किया गया प्रतीत नहीं होता कि प्रत्येक
उपनिवेशको शेष साम्राज्यके प्रति कर्तव्य-दृष्टिसे यह तय कर लेना चाहिए कि उसकी घरेलू नीति से
भारतके प्रशासनमें कोई अनावश्यक परेशानी पैदा न होने पाये । जिन राजनीतिज्ञोंने भारतीयोंको केवल
मजदूरों और छोटे व्यापारियोंके रूपमें ही देखा है, उनके लिए यह कठिन है कि वे उस समूचे देशका
साम्राज्यके लिए महत्व समझ सकें जिसमें ३० करोड़ लोग रहते हैं, जिसकी सभ्यता अति प्राचीन और
बहुत उच्च कोटिकी है, जिसने साम्राज्यकी सेनाओंके लिए कुछ उत्तम सैनिक सामग्री दी है और अब भी
देता है तथा जहाँ आर्थिक एवं व्यापारिक उद्यमकी जबर्दस्त गुंजाइश है । जो लोग भारत से परिचित नहीं
हैं उन्हें यह समझाना कठिन है कि भारतीय सेनाके पुराने सैनिकोंने जब यह देखा कि ब्रिटिश साम्राज्यके
भागों में ही उन्हें “कुली" कहा जाता है और उनके साथ तिरस्कारपूर्ण और कठोर व्यवहार किया जाता
है तो उनमें कितना तीव्र और स्वाभाविक रोष उत्पन्न हुआ । (यह घटना वास्तविक है ।) ये वे सैनिक
थे जिन्होंने ब्रिटिश ध्वजाके नीचे सक्रिय सेवा की है और पदक प्राप्त किये हैं एवं जिनके साथ उनके
अंग्रेज अफसरोंने सम्मानपूर्ण और शिष्ट व्यवहार किया है; अवश्य ही वे अपने चरित्रके कारण इसके
अधिकारी थे । माना कि इस तरहकी बातें बहुत कुछ सरकारके नियन्त्रणसे बाहर होती हैं; किन्तु लोगों की
भ्रान्त धारणाएँ बड़ी आसानीसे अनिष्टको जन्म दे सकती हैं इसलिए इस गम्भीर तथ्यको स्पष्ट करना