ख
नवम्बर २८, १९११
१. ट्रान्सवाल्के सत्याग्रह विवाद-सम्बन्धी समझौतेको वैध रूप देनेके लिये कानूनी व्यवस्था करना आवश्यक नहीं समझा जाता ।
२. धारा ५ (च) । अधिवाससे आवश्यक रूपसे निवासका अधिकार नहीं मिलता; अर्थात् एशियाई पंजीयन सम्बन्धी कानूनों का पालन न करनेसे किसी भी अधिवास प्राप्त व्यक्तिका निवासका अधिकार चला जायेगा ।
३. धारा ५ (ङ) और (छ) । उपनिवेश-मन्त्री द्वारा उठाया गया मुद्दा ध्यानमें रखा जायेगा |
४. धारा ५ (ज) । यह आशंका नहीं की जाती कि " गोरा " शब्दके प्रयोगसे कोई कठिनाई उत्पन्न होगी । वर्तमान रूपमें इस धाराका उद्देश्य यह है कि जब कभी कोई सरकार संसारके दूसरे भागोंसे संघमें रंगदार या एशियाई मजदूर लानेका विचार करे तो वह संसदमें जानेके लिए बाध्य हो ।
५. प्रथम अनुसूची । यद्यपि ट्रान्सवालके १९०८ के अधिनियम सं० ३६ पर महामहिम सम्राटने कभी स्वीकृति नहीं दी है, फिर भी वह विधि-पुस्तिका में है और बादमें कानूनी प्रश्न उठ सकते हैं; इनके निराकरण के लिए उपयुक्त यह है कि ट्रान्सवाल संसद द्वारा पारित किये गये कानूनों की सूचीमें से इसे निकाल दिया जाये ।
६. धारा ७ और २८ (२) । खण्ड ४ (क) की व्यवस्थाके अन्तर्गत संघमें प्रविष्ट भारतीयोंको ऑरेज फ्री स्टेटमें प्रवेशके लिए अतिरिक्त अनुमतिकी आवश्यकता न होगी; किन्तु यदि वे उस प्रान्त में प्रविष्ट हो जाते हैं तो उनपर स्वभावतः व्यापार, खेती और भूमिके स्वामित्व सम्बन्धी निर्योग्यताएँ, जो ऑरेंज फ्री स्टेटकी विधि-पुस्तिका के अध्याय ३३ में दी गई हैं, लागू होंगी।
यद्यपि ये धाराएँ ऐसी नहीं हैं जिनसे भारतीय नेता पूरी तरह सहमत हों, फिर भी यह खयाल किया जाता है कि वे उनके लिए अत्यन्त सन्तोषजनक सिद्ध होंगी, क्योंकि वे उन आवेदनोंके अनुसार हैं जो भारतीय नेताओंने समय-समयपर सरकारको भेजे हैं ।
७. भारत-सचिवने नेटालमें रहनेवाले उन भारतीयोंकी स्थितिके सम्बन्धमें, जो केपमें और केपसे बाहर जाकर अन्यत्र प्रवास करना चाहते हैं, जो प्रश्न उठाया है, उसके विषय में मन्त्रीगण यह कहना चाहते हैं कि धारा ७ की व्यवस्थाका उद्देश्य नेटालकी भारतीय आबादीको अन्य प्रान्तोंमें प्रवास करनेसे रोकना है । केप, ट्रान्सवाल और ऑरेंज फ्री स्टेटके यूरोपीय निवासी नेटालके रहनेवाले भारतीयोंके बेजा प्रवेश-पर अत्यन्त तीव्र रोष प्रकट करेंगे और मन्त्रीगण यह कहनेके लिए तैयार नहीं हैं कि इस धाराकी व्यवस्थाके अन्तर्गत चुने हुए भारतीयोंको भी भविष्य में इस प्रान्तमें प्रविष्ट होने दिया जायेगा ।
मन्त्री यह बताना चाहते हैं कि दक्षिण आफ्रिकाकी भारतीय आवादीके सम्बन्धमें जो कठिनाइयाँ हैं, उनको देखते हुए सरकारको अत्यन्त सावधानीसे कार्रवाई करनेकी आवश्यकता है और यदि संसदके केपके सदस्योंका खयाल यह बन जाये कि नेटालमें रहनेवाले भारतीयोंको केप प्रान्तमें आनेकी अनुमति दे दी जायेगी तो उनके विरोधसे यह विधेयक सम्भवतः समाप्त भी हो सकता है ।
लुई बोथा
कलोनियाल ऑफिस रेकर्डस; सी० ओ० ५५१/१४