५७४ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय सम्पर्क से पहले ही अनेक गम्भीर सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं नैतिक समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं, जिनके कारण उस उपमहाद्वीपके यूरोपीयोंका मन उद्विग्न, आशंकित, बल्कि कह सकते हैं, भयभीत है । और वे अपनी इस कठिनाई और उलझी हुई परिस्थितिके बीच दक्षिण आफ्रिकाके जीवन में एक तीसरे तत्त्वको आते हुए देख रहे हैं, जो एक भिन्न प्रकारकी सभ्यतामें पले हैं और एक दूसरे ढंगकी जीवन-प्रणाली तथा विचार पद्धतिका प्रतिनिधित्व करते हैं । यह ठीक है कि इस समय दक्षिण आफ्रिका में भारतीयोंकी आबादी १२३ लाख यूरोपीयोंके मुकाबले केवल डेढ़ लाख हैं । किन्तु, यूरोपीयोंको लगता है कि भारतमें तो ३० करोड़ लोग रहते हैं और यदि भारतीय निर्वाध रूपसे दक्षिण आफ्रिका आते रहे तो कोई कारण नहीं कि लाखों भारतीय यहाँ आकर यूरोपीय आबादीपर छा नहीं जायेंगे और इस देशको लगभग दूसरा भारत ही नहीं बना डालेंगे। यह भय है तो बिल्कुल दुराशंकाओंपर ही आधारित किन्तु इसकी जड़ें बहुत गहरी, मजबूत और व्यापक हैं, और इसकी ओरसे आँखें बन्द कर लेनेसे कोई लाभ नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त, एक बात यह है कि वहाँ चमड़ीके रंगको लेकर बड़ा जबरदस्त पूर्वग्रह फैला हुआ है, और इस पूर्वग्रहको डच लोग अंग्रेजोंसे भी अधिक तीव्रता से महसूस करते हैं; इसके सिवा छोटे यूरोपीय व्यापारी भारतीय स्पर्धा भयसे आतंकित हैं। उन्हें लगता है कि भारतीयोंके अपेक्षाकृत कम खर्चीले जीवन-स्तर के कारण वे खुली होदमें उनके विरुद्ध टिक नहीं सकते । इन सारे कारणोंका सम्मिलित परिणाम है भारतीयोंके विरुद्ध अपनाई गई आजकी कठोर और दमनकारी नीति । इस नीतिका स्पष्ट उद्देश्य भारतीयों के जीवनको इतना दूभर बना देना है कि लगभग बाध्य होकर उन्हें वह देश छोड़ देना पढ़े, या यदि वे वहाँ रहें हो तो एक हेष, तिरस्कृत और दलित समाजके सदस्यों के रूप में रहें । एक गम्भीर परिस्थिति तो ऐसी गम्भीर, चिन्ताजनक और अत्यन्त कठिन वहाँकी स्थिति है । जबतक दक्षिण आफ्रिका के यूरोपीयोंका मन इस भयसे ग्रस्त है कि भारतीय जबर्दस्त संख्या में यहाँ आकर यूरोपीयोंपर छा जायेंगे, तबतक हमारे देशभाइयोंके लिए पूर्ण समानताकी बात तो छोड़िए - इतना भी न्यायपूर्ण और मानवीय व्यवहार प्राप्त करनेकी कोई सम्भावना नहीं है कि वे चैनसे रहते हुए धीरे-धीरे एक स्वशासित समाजके योग्य स्थान प्राप्त करनेकी दिशामें प्रगति कर सकें। दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयों के अच्छे-अच्छे यूरोपीय मित्र भी – जिन्हें भारतीयोंका मित्र कहा जा सकता है, ऐसे बहुत थोड़े यूरोपीय हैं - मानते हैं कि जबतक यूरोपीयोंके मनको इस प्रकार उनपर छा जानेके भयसे मुक्त नहीं कर दिया जाता तबतक वे भारतीय समाजके प्रति अधिक न्यायपूर्ण और मानवीय व्यवहारकी दलीलको पेश करके यूरोपीयोंपर कोई विशेष प्रभाव नहीं डाल सकते । एक दूसरा और इससे काफी बड़ा वर्ग ऐसे यूरोपीयोंका है जिनमें न्यायकी भावना शेष है और वे भारतीयोंके प्रति अपनाई गई वर्तमान नीतिपर हार्दिक लज्जाका अनुभव करते हैं । भारतीय अपने प्रति होनेवाले वर्तमान व्यवहारके विरुद्ध जो संघर्ष चला रहे हैं, यह वर्ग भी यूरोपीयोंके मनसे यह भय दूर हो जानेपर उससे सहानुभूति रखनेको तैयार है - लेकिन यह भय दूर हो जानेके बाद ही, उससे पहले नहीं । स्वयं दक्षिण आफ्रिकाका भारतीय समाज भी स्पष्टतः उस भयको दूर करनेकी आवश्यकता महसूस करता है, हालों कि वह भय न्यूनाधिक निराधार ही है । यह बात इस तथ्यसे स्पष्ट हो जाती है कि पिछले कुछ वर्षोंसे उस उपनिवेशमें जानेवाले मुक्त भारतीय प्रवासियों की संख्या ४० से ५० के बीच ही रही है – यद्यपि वहाँके आम यूरोपीय लोग इस संख्याको सही नहीं मानते और न उन्हें यह समझाया ही जा सकता कि यह संख्या सही है । इसलिए कुछ समयसे श्री गांधीके नेतृत्वमें हमारे दक्षिण आफ्रिकी देशभाई इस नीतिका अनुसरण कर रहे हैं कि उस देशके कानून में साम्राज्य के समानता के हकदार प्रजाजनोंके रूपमें अपने सैद्धांतिक अधिकारोंकी अक्षुण्णतापर आग्रह Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/६१२
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