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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/६१३

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परिशिष्ट ५७५. रखते हुए, अन्याय और अत्याचारकी वर्तमान नीतिमें व्यवहारतः ऐसे सुधार करवानेका प्रयत्न किया जाये जिससे समाज सुख-शांतिसे जीवन बिताते हुए फूले-फूले और धीरे-धीरे उसकी प्रतिष्ठा और महत्त्वमें वृद्धि हो; और जो एक बार थोडेसे-थोड़े समय के लिए भी दक्षिण आफ्रिका हो आयेगा, वह इस बातको अच्छी तरह समझ जायेगा कि वर्तमान परिस्थितियोंमें भारतीयों के अनुसरण करने योग्य यही एकमात्र बुद्धिमतापूर्ण, ठोस, व्यावहारिक और राजनयिकोचित नीति है । पिछले साल श्री गांधी और जनरल स्मटसके बीच हुए जिस समझौतेके अन्तर्गत सत्याग्रह संघर्ष स्थगित कर दिया गया, उसमें इसी नीतिके अनुसार संघ- सरकार इस बात से सहमत हो गई कि प्रस्तावित नये प्रवासी कानूनमें वह भारतीयोंके विरुद्ध कोई कानूनी भेद-भाव नहीं करेगी। उधर श्री गांधीने अपनी ओरसे यह स्वीकार किया कि प्रशासन व्यवहारमें कानूनको अमल में लानेवाली कार्यपालिकामें निहित विवेकाधिकारका जैसा उचित समझे वैसा उपयोग करे, बशर्ते कि प्रतिवर्ष एक न्यूनतम संख्या में ऐसे भारतीयों को आने दिया जाये, जिनका आना समाजकी विशिष्ट आवश्यकताओं और विभिन्न क्षेत्रों में होते रहनेवाली इस ढंगको कमियोंको पूरा करनेके लिए जरूरी है। और ट्रान्सवालके लिए, जहाँ वर्तमान कानून के अन्तर्गत एक भी भारतीयको प्रवेश नहीं दिया जाता, यह न्यूनतम संख्या छः है । संपूर्ण संघके लिए चालीसकी न्यूनतम संख्याको माँग की जा रही है, और पिछले सात सालसे इतने ही स्वतंत्र भारतीय प्रवासी औसतन प्रतिवर्ष प्रवेश करते रहे हैं। समझौतेका सार यह है कि कानूनी असमानताको दूर करके साम्राज्यके प्रजाजनोंके रूपमें भारतीयों के सैद्धांतिक अधिकारोंको भी कायम रखा जाये, और नये प्रवासियोंकी संख्याको मौजूदा औसत के आधारपर सीमित करके यूरोपीयोंके मनको भी भारतीयोंके अन्धाधुन्ध प्रवेशके भयसे मुक्त कर दिया जाये । एक बार यह सब हो जानेके बाद वहाँके भारतीय अन्य बातोंमें अधिक न्यायपूर्ण, मानवीय और समान व्यवहारके लिए ज्यादा कारगर ढंगसे संघर्ष कर सकेंगे। मैंने भी दक्षिण आफ्रिकामें जो कुछ किया, इसी विचारसे किया । वहाँका भारतीय समाज जो कुछ माँग कर रहा है, मैंने उससे तनिक भी कम या अधिक नहीं माँगा । मुझे एक सुविधा यह थी कि यूरोपीय समुदायके लोगोंसे मिलने-जुलनेका जैसा अवसर मुझे प्रदान किया गया वैसा पहले किसी भारतीयको नहीं मिला था। इस प्रकार मैं यूरोपीय समुदाय के लोगोंके आमने-सामने खड़ा होकर, न्याय और मानवताके लिए अपनी पुकार प्रत्येक हृदय, प्रत्येक अन्तरात्मा तक पहुँचा सका । 'खुले दरवाजे' की नीति श्री गोखलेने कहा - किन्तु कल भारत लौटनेपर कुछ क्षेत्रोंमें व्यक्त किये गये इस विचारको सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया कि दक्षिण आफ्रिकामें मैंने जो नीति अपनाई थी, वह गलत थी। उनके विचारसे मुझे वहाँ मुक्त प्रवेशसे कम किसी बातकी माँग नहीं करनी चाहिये थी। उनका कहना है कि इस सम्बन्धमें श्री गांधीने भारतके अधिकारोंका परित्याग कर दिया है; और मैंने उस परित्यागकी पुष्टि कर दी । इस विषय में मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि आलोचकोंने दक्षिण आफ्रिकाकी समस्याकी कोई सही समझका परिचय नहीं दिया है। वहाँके भारतीय समाजकी मुख्य समस्या अधिकाधिक भारतीयोंको प्रवेश दिलानेके लिए खुले दरवाजेकी नीतिपर आग्रह करना नहीं है । उसकी मुख्य समस्या तो यह है कि किस प्रकार, आज वह जिस स्थितिमें रह रहा है, उसमें ऐसे सुधार कराये जायें जिससे उसका जीवन अधिक सा हो सके और उसे एक स्वशासित समाजके महत्त्वपूर्ण अंगके रूपमें विकसित होनेके सुअवसर प्राप्त हों । इसे प्राप्त करनेका एकमात्र उपाय यही है कि वे सम्पूर्ण प्रश्नके प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण रखें । मैं बहुत आसानीसे दक्षिण आफ्रिकामें व्यवहारतः खुले दरवाजेकी नीतिकी माँग कर सकता था। मैं उसके सम्बन्धमें जोशीले भाषण दे सकता था और फिर अपने मनमें इस बातकी खुशी लेकर स्वदेश लौट आ सकता था कि मैंने जोशीले भाषण दिये । किन्तु, उससे दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके पक्षको कोई बल नहीं मिल सकता था । यूरोपीय समाजपर भी इसका यही प्रभाव होता कि वे भारतीयोंसे Gandhi Heritage Portal