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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मांगी गई थी, उनमें तीन-पौंडी कर भी एक था और इसलिए सरकारको कमसे-कम आयोगका प्रतिवेदन आने तक इस करकी किस्तें काटना बन्द ही रखना चाहिए था। अब आयोगका प्रतिवेदन आ चुका है और उसमें इस करको रद करनेकी बड़ी जोरदार सिफारिश की गई है। इसलिए मुझे विश्वास है कि सम्बन्धित अधिकारियोंको इस करकी किश्तें काटनेपर आग्रह न करने के लिए यदि अभी तक हिदायतें नहीं दी गई है। तो अब दे दी जायेंगी; क्योंकि मैं समझता हूँ कि यदि सरकार करको रद करनेका विधेयक पेश करेगी तो करकी बकाया राशि माफ कर दी जायगी।

आपका सच्चा

श्री अर्नेस्ट एफ० सी० लेन

गृह-मन्त्रीका कार्यालय

केप टाउन

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५९५७) की फोटो-नकलसे।

३१०. पत्र : मणिलाल गांधीको

[फीनिक्स,
नेटाल
रविवार, चैत्र वदी २, अप्रैल १२, १९१४]'

... श्री कैलेनबैक चाहें जब सोयें, परन्तु तुम्हें तो एक ही नियम रखना चाहिए। खानेके बारेमें भी यही बात है। तुम जिन वाक्योंको न समझ सको उनका अर्थ यह है : “जो कर्म सिर्फ नियमसे (अक्षरार्थ करके) किये जाते हैं उनके लिए तो शाप है। फिर भी ऐसा लिखा हुआ है कि जो नियममें बताये हुए कर्म नहीं करते रहते वे सब शापित है। भावार्थ यह है कि केवल पुस्तकीय ज्ञान पानेवाले लोग कभी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते। ऐसा ही वचन गीताजीम है, उसपर विचार कर लेना। "त्रैगुण्यविषया वेदा निस्वैगुण्यो भवार्जुन"- यह वाक्य अर्जुनसे श्री कृष्णने कहा था। इसका यह अर्थ नहीं कि शास्त्रविहित कर्म न किये जायें। परन्तु उन्हें करना ही काफी नहीं है। अर्थ यह है कि उनका गढ़ अर्थ समझकर, उनका हेतु समझकर हम उससे आगे बढ़ें। जो आदमी विहित कर्म छोड़कर शुष्क ब्रह्मवादी बन जाता है, वह न तो इधरका रहता, न उधरका। वह शास्त्रका सहारा खो बैठता है; और ज्ञानका आधार उसे मिलता नहीं, इसलिए वह गिरता ही है। इसीलिए "गेलेशियनों" को सन्त पालने कहा था : “तुम लोग शास्त्रके अनुसार कर्म तो करो ही; परन्तु ईसापर श्रद्धा रखकर उनकी शिक्षाका अनुसरण नहीं करोगे तो शापित रहोगे।" यही भावार्थ "बॉण्ड मेड" और “फ्री वुमैन" के सम्बन्धमें है। बॉण्ड यानी बन्धन । शास्त्रको स्थल माताकी उपमा दी

१. तिथि श्री रावजी भाई पटेल द्वारा प्राप्त ।

२. जान पड़ता है, मूल सूत्रमें यहाँ कुछ शब्द छोड़ दिये गये हैं ।

३. बाइबिल ।